SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणस्थानाधिकार १०१ असत्यामृषवचनयोग, ये सात योग हैं। अयोगिकेवलि गुणस्थान में एक भी योग नहीं होता - योग का सर्वथा अभाव है ॥ ४७ ॥ भावार्थ - छठे गुणस्थान में तेरह योग कहे गये हैं। इनमें से चार मन के, चार वचन के और एक औदारिक, ये नौ योग सब मुनियों के साधारण हैं और वैक्रिय-द्विक तथा आहारक-द्विक, ये चार योग वैक्रियशरीर या आहारकशरीर बनानेवाले लब्धिधारी मुनियों के ही होते हैं। वैक्रियमिश्र और आहारकमिश्र, ये दो योग, वैक्रियशरीर और आहारकशरीर का आरम्भ तथा परित्याग करने के समय पाये जाते हैं, जब कि प्रमाद-अवस्था होती है। पर सातवाँ गुणस्थान अप्रमत्त अवस्था - भावी है; इसलिये उसमें छठे गुणस्थानवाले तेरह योगों में से उक्त दो योगों को छोड़कर ग्यारह योग माने गये हैं। वैक्रियशरीर या आहारकशरीर बना लेने पर अप्रमत्त-अवस्था का भी संभव है; इसलिये अप्रमत्तगुणस्थान के योगों में वैक्रियकाययोग और आहारक काययोग की गणना है। सयोगिकेवली को केवलिसमुद्घात के समय कार्मण और औदारिकमिश्र, ये दो योग, अन्य सब समय में औदारिककाययोग, अनुत्तर विमानवासी देव आदि के प्रश्न का मन से उत्तर देने के समय दो मनोयोग और देशना देने के समय दो वचनयोग होते हैं। इसी से तेरहवें गुणस्थान में सात योग माने गये हैं। केवली भगवान सब योगों का निरोध करके अयोगि अवस्था प्राप्त करते हैं; इसीलिये चौदहवें गुणस्थान में योगों का अभाव है || ४७|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy