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________________ चौथा कर्मग्रन्थ भावार्थ-विग्रहगति, केवलिसमुद्धात और मोक्ष में अनाहारकत्व होता है। विग्रहगति में आठ उपयोग होते हैं। जैसे-भावी तीर्थङ्कर आदि सम्यक्त्वी को तीन ज्ञान, मिथ्यात्वी को तीन अज्ञान और सम्यक्त्वी-मिथ्यात्वी उभय को अचक्षु और अवधि, ये दो दर्शन। केवलिसमुद्धात और मोक्ष में केवलज्ञान और केवलदर्शन, दो उपयोग होते हैं। इस तरह सब मिलाकर अनाहारक मार्गणा में दस उपयोग हुए। मनः पर्यायज्ञान और चक्षुदर्शन, ये दो उपयोग पर्याप्त-अवस्थाभावी होने के कारण अनाहारक मार्गणा में नहीं होते। केवलज्ञान के सिवाय चार ज्ञान, यथाख्यात के सिवाय चार चारित्र, औपशमिक-क्षायोपशमिक दो सम्यक्त्व और अवधिदर्शन, ये ग्यारह मार्गणाएँ चौथे से लेकर बारहवें गुणस्थान तक में ही पायी जाती हैं; इस कारण इनमें तीन अज्ञान और केवल-द्विक, इन पाँच के सिवाय शेष सात उपयोग माने हुए हैं। ____ इस जगह अवधिदर्शन में तीन अज्ञान नहीं माने हैं। सो २१वीं गाथा में कहे हुए ‘जयाइ नव मइसुओहिदुगे' इस कार्मग्रन्थिक मत के अनुसार समझना चाहिये।।३४।। दो तेर तेर बारस, मणे कमा अट्ठ दु चउ चउ वयणे। चउ दु पण तिनि काये, जियगुणजोगोवओगन्ने।।३५।। द्वे त्रयोदश त्रयोदश द्वादश, मनसि क्रमादष्ट द्वे चत्वारश्चत्वारो वचने। चत्वारि द्वे पञ्च त्रयः काये, जीवगुणयोगोपयोगा अन्ये।।३५।। अर्थ-अन्य आचार्य मनोयोग में जीवस्थान दो, गुणस्थान तेरह, योग तेरह, उपयोग बारह, वचनयोग में जीवस्थान आठ, गुणस्थान दो, योग चार, उपयोग चार और काययोग में जीवस्थान चार, गुणस्थान दो, योग पाँच और उपयोग तीन मानते हैं।।३५॥ भावार्थ-पहले किसी प्रकार की विशेष विवक्षा किये बिना ही मन, वचन और काययोग में जीवस्थान आदि का विचार किया गया है। पर इस गाथा में कुछ विशेष विवक्षा करके। अर्थात् इस जगह प्रत्येक योग यथासम्भव अन्य योग से रहित लेकर उसमें जीवस्थान आदि दिखाये हैं। यथासम्भव कहने का मतलब यह है कि मनोयोग तो अन्य योगरहित मिलता ही नहीं; इस कारण वह वचनकाय उभय-योग-सहचरित ही लिया जाता है; पर वचन तथा काययोग के विषय में यह बात नहीं; वचनयोग कहीं काययोगरहित न मिलने पर भी द्विन्द्रियादि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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