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चौथा कर्मग्रन्थ
__भावार्थ-चतुरिन्द्रिय और असंज्ञि-पञ्चेन्द्रिय में विभङ्गज्ञान प्राप्त करने की योग्यता नहीं है तथा उनमें सम्यक्त्व न होने के कारण, सम्यक्त्व के सहचारी पाँच ज्ञान और अवधि और केवल दो दर्शन, ये सात उपयोग नहीं होते, इस तरह कुल आठ के सिवाय शेष चार उपयोग होते हैं।
एकेन्द्रिय आदि उपर्युक्त आठ मार्गणाओं में नेत्र न होने के कारण चक्षुर्दर्शन और सम्यक्त्व न होने के कारण पाँच ज्ञान तथा अवधि और केवल, ये दो दर्शन और तथाविध योग्यता न होने के कारण विभङ्गज्ञान, इस तरह कुल नौ उपयोग नहीं होते, शेष तीन होते हैं।
अज्ञान-त्रिक आदि उपर्युक्त छह मार्गणाओं में सम्यक्त्व तथा विरति नहीं है; इसलिये उनमें पाँच ज्ञान और अवधि-केवल, ये दो दर्शन, इन सात के सिवाय शेष पाँच उपयोग होते हैं।
सिद्धान्ती, विभङ्गज्ञानी में अवधिदर्शन मानते हैं और सास्वादनगुणस्थान में अज्ञान न मानकर ज्ञान ही मानते हैं; इसलिये इस जगह अज्ञान-त्रिक आदि छह मार्गणाओं में अवधिदर्शन नहीं मानारे है और सास्वादन मार्गणा में ज्ञान नहीं माना है, सो कार्मग्रन्थिक मत के अनुसार समझना चाहिये।।३२।।
केवलदुगे नियदुर्ग, नव तिअनाण विणु खइयहखाये। दंसणनाणतिगं दे,-सि मीसि अन्नाणमीसं तं।।३३।।
केवलद्विके निजद्विकं, नव त्र्यज्ञानं बिना क्षायिकयथाख्याते। दर्शनज्ञानत्रिकं देशे मिश्रेऽज्ञानमिदं तत्।।३३।।
अर्थ-केवल-द्विक में निज-द्विक (केवलज्ञान और केवलदर्शन) दो ही उपयोग हैं। क्षायिक सम्यक्त्व और यथाख्यातचारित्र में तीन अज्ञान को छोड़, शेष नौ उपयोग होते हैं। देशविरति में तीन ज्ञान और तीन दर्शन, ये छह उपयोग होते हैं। मिश्र-दृष्टि में वही उपयोग अज्ञान-मिश्रित होते हैं।।३३॥
भावार्थ-केवल-द्विक में केवलज्ञान और केवलदर्शन दो ही उपयोग माने जाने का कारण यह है कि मतिज्ञान आदि शेष दस छाद्यस्थिक उपयोग, केवली को नहीं होते।
क्षायिक सम्यक्त्व के समय, मिथ्यत्व का अभाव ही होता है। यथाख्यातचारित्र के समय, ग्यारहवें गुणस्थान में मिथ्यात्व भी है, पर सिर्फ १. खुलासे के लिये २१वीं तथा ४९वीं गाथा का टिप्पण देखना चाहिये। २. वही मत गोम्मटसार-जीवकाण्ड की ७०४वीं गाथा में उल्लिखित है।
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