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________________ चौथा कर्मग्रन्थ इस जगह अवधिदर्शन में नौ गुणस्थान कहे हुए हैं, सो कार्मग्रन्थिक मत के अनुसार। कार्मग्रन्थिक विद्वान् पहले तीन गुणस्थानों में अवधिदर्शन नहीं मानते। वे कहते हैं कि विभङ्गज्ञान से अवधिदर्शन की भिन्नता न माननी चाहिये । परन्तुं सिद्धान्त के मतानुसार उसमें और भी तीन गुणस्थान गिनने चाहिये। सिद्धान्ती, विभङ्गज्ञान से अवधिदर्शन को जुदा मानकर पहले तीन गुणस्थानों में भी अवधिदर्शन मानते हैं । २१ ॥ ६२ अड उवसमि चउ वेयगि, खइए इक्कार मिच्छतिगि देसे । सुहुमे य सठाणं तेर, - स जोग आहार सुक्काए ।। २२ ।। अष्टोपशमे चत्वारि वेदके, क्षायिक एकादश मिथ्यात्रिके देशे । सूक्ष्मे च स्वस्थानं त्रयोदश योगे आहारे शुक्लायाम् ।। २२ ।। अर्थ-उपशम सम्यक्त्व में चौथा आदि आठ, वेदक ( क्षायोपशमिक - ) सम्यक्त्व में चौथा आदि चार और क्षायिक सम्यक्त्व में चौथा आदि ग्यारह गुणस्थान हैं। मिथ्यात्व - त्रिक (मिथ्यादृष्टि, सास्वादन और मिश्रदृष्टि ) में, देशविरति में तथा सूक्ष्मसम्पराय चरित्र में स्व-स्व स्थान (अपना-अपना एक ही गुणस्थान) है। योग, आहारक और शुक्ललेश्यामार्गणा में पहले तेरह गुणस्थान हैं || २२ || भावार्थ- - उपशम सम्यक्त्व में आठ गुणस्थान माने गये हैं। इनमें से चौथा आदि चार गुणस्थान, ग्रन्थि - भेद - जन्य प्रथम सम्यक्त्व पाते समय और आठवाँ आदि चार गुणस्थान, उपशमश्रेणि करते समय होते हैं। वेदक सम्यक्त्व तभी होता है, जब कि सम्यक्त्व मोहनीय का उदय हो । सम्यक्त्व मोहनीय का उदय, श्रेणि का आरम्भ न होने तक (सातवें गुणस्थान तक) रहता है। इसी कारण वेदक सम्यक्त्व में चौथे से लेकर चार ही गुणस्थान समझने चाहिये। चौथे और पाँचवें आदि गुणस्थान में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है, जो सदा के लिये रहता है, इसी से उसमें चौथा आदि ग्यारह गुणस्थान कहे गये हैं । पहला ही गुणस्थान मिथ्यात्व रूप, दूसरा ही सास्वादन - भाव रूप, तीसरा ही मिश्र - दृष्टि रूप, पाँचवाँ ही देशविरति रूप और दसवाँ ही सूक्ष्मसम्पराय चारित्र रूप है। इसी से मिथ्यात्व - त्रिक, देशविरति और सूक्ष्मसम्पराय में एक-एक गुणस्थान कहा गया है। १. देखिये, परिशिष्ट 'ड' | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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