SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्गणास्थान - अधिकार अनाहारक मार्गणा में आठ जीवस्थान ऊपर कहे हुए हैं, इनमें सात अपर्याप्त हैं और एक पर्याप्त। सब प्रकार के अपर्याप्त जीव, अनाहारकर उस समय होते हैं, जिस समय वे विग्रहगति ( वक्रगति) में एक, दो या तीन समय तक आहार ग्रहण नहीं करते। पर्याप्त संज्ञी को अनाहारक इस अपेक्षा से माना है कि केवलज्ञानी, द्रव्यमन के सम्बन्ध से संज्ञी कहलाते हैं और वे केवलिसमुद्घात के तीसरे, चौथे और पाँचवे समय में कार्मण काययोगी होने के कारण किसी प्रकार के आहार को ग्रहण नहीं करते । सासादन सम्यक्त्व में सात जीवस्थान कहे हैं, जिनमें से छ: अपर्याप्त हैं और एक पर्याप्त। सूक्ष्म एकेन्द्रिय को छोड़कर अन्य छः प्रकार के अपर्याप्त जीवस्थानों में सासादन सम्यक्त्व इसलिये माना जाता है कि जब कोई औपशमिकसम्यक्त्व वाला जीव, उस सम्यक्त्व को छोड़ता हुआ बादरएकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञि - पञ्चेन्द्रिय या संज्ञि - पञ्चेन्द्रिय में जन्म ग्रहण करता है, तब उसको अपर्याप्त अवस्था में सासादन सम्यक्त्व पाया जाता है; परन्तु कोई जीव औपशमिक सम्यक्त्व को वमन करता हुआ सूक्ष्मएकेन्द्रिय में पैदा नहीं होता, इसलिये उसमें अपर्याप्त अवस्था में सासादन सम्यक्त्व का संभव नहीं है। संज्ञि - पञ्चेन्द्रिय के अतिरिक्त कोई भी जीव, पर्याप्तअवस्था में सासादन सम्यक्त्वी नहीं होता; क्योंकि इस अवस्था में औपशमिक सम्यक्त्व पानेवाले संज्ञी ही होते हैं, दूसरे नहीं ॥ १८ ॥ १. देखिये, परिशिष्ट 'ठ' । Jain Education International ५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy