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________________ ( ५० ) अन्तरशतया तस्य ताश्या कृतसस्कृतिः । भत मेण्ठः कविमने पुनरकं धियोऽर्पणम् ॥ [राजतरंगिणी ३० ३, २६०-२६२] काव्यप्रकाश की 'बालबोधिनी' टीका में वामनाचार्य ने प.१] हयग्रीददध को नाटक बतलाया है। सूर से 'राजकीय प्रन्यमाला' में प्रकाशित काव्यप्रकाश में भी 'हयग्रीववर्ष' का नाटक रूप में ही उल्लेख किया गया है। इसी कारण हमने भी अपनी काव्य प्रकाश की टीका में नाटक रूप में ही उसका निर्देश कर दिया है। किन्तु 'श्रृंगारप्रकरश', 'काव्यानुशासन' प्रादि प्राचीन अन्यों से निति होता है कि यह नाटक नहीं, अपितु 'सर्गबन्ध' महाकाव्य है । हेमचन्द्राचार्य के 'काव्यानुशासन' में [म. ८. ३३७] 'संस्कृतभाषानिबद्धसर्गजन्छ हयग्रीववधादि' लिख कर ग्रन्थकार ने इसे पष्ट रूप से श्रय काव्य ही सूचित किया है। भोजदेव के 'शृंगारप्रकाश में भी 'हयग्रीववध' का अनेक स्थानों पर उल्लेख पाया है। वहाँ भी इसे महाकाध्य ही माना है। 'श्रृंगारप्रकाश' में कुछ स्थल, जिनमें 'हयग्रीववध' की पर्चा की गई है निम्न प्रकार है"हयग्रीवधादयो महादेवादीनामैतिहासिकं चरितमावेदयन्ति ।" [शृङ्गारप्रकाश प्र० १२, पृ० १६८] "मासीद दैत्यो इयग्रीवः......." [सं० प्र० ११, पृ० १४०]] रात्रिवर्णनं किरातर्जुनीय-कुमारसम्भव-शिशुपालबष-हयग्रीववषादी।" [शृङ्गारप्रकाश प्र० ११, पृ० १५२] यस्मिन् इतिहासानिपेशलान् पेशलान् कविः कुरुते । स हयग्रीववधादिप्रबन्ध व सगंबन्धः स्यात् ॥" शृङ्गारप्रकाश प्र० पृ. १५६] कवि क्षेमेन्द्र ने 'सुवृत्त लिलक' [३, १६] में सगंबन्ध महाकाव्य के प्रारम्भ में अनुष्टुप के प्रयोग का उदाहरण देते हुए हयसीववष का 'मासीद दैत्यो हयग्रीवः' इत्यादि पर नत किया है। इससे भी प्रतीत होता है कि हमनीववर्ष' नाटक नहीं, काम्य है। श्री मङ्ख कवि ने अपने 'श्रीकण्ठचरित' में अत्यन्त अक्षा के साथ भतुंमेष्ठ कविका उल्लेख करते हुए लिखा है--- मेण्टे स्वद्विरदाधिरोहिणि, बंधं याते सुबन्धी विषेः - शान्त हन्त च भारवी, विषटिते बाणे विवादस्पृशाः। वाग्देव्या विरमन्तु पत्र विधुरा द्राग् स्प ष्टते शिष्टः कश्चन् स प्रसादयति जयद्वाणि सदारिणनी॥ ऐसे महाकवि थे मत मेण्ठ, बिनका यशोगान संस्कृत साहित्य के अनेकानेक कवियों ने मुक्तकण्ठ से किया है । किन्तु काव्यप्रकाशकार मम्मट की दृष्टि में मेष्ठकपि चे नहीं। उन्होंने दो तीन जगह मे कवि का उल्लेख किया है पर यह प्रसंसा-व्यंबक नहीं है। सबसे पहिले काव्यप्रकाश के प्रपा उल्लास में उन्होंने सबसे निकष्ट चित्र काव्य का सो उदाहरण दिवा है यह हयग्रीववष में से बोल कर निकाला है विनिर्मतं मानवमात्ममन्दिराब - भवत्युपश्रुत्व पाल्पयापि वा। स-सम्भमेन्द्रतिपातिवाचा निमोविवावि भिवामपती॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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