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दण्डी बाण-दिवाकरी गणपतिः कान्तश्च रत्नाकरः सिद्धा यस्य सरस्वती रसवती के तस्य सर्वेऽपि ते ।।
___ [शार्गधरपद्धति १८८] कवि पद्मगुप्तने भी-जिनका दूसरा नाम परिमल भी था--'नवसाहसांकचरित' नामक अपने अन्य में मत मेण्ठ का स्मरण बड़े मादर के साथ करते हुए उनकी प्रशंसा-सूचक निग्न दो हलोड लिखे है
तत्त्वस्पृशस्ते कवयः पुराणाः श्री भत मेण्ठ प्रयुखा जयन्ति । निस्त्रिशषारासहशेन येषां वैदर्भमार्गेण गिरः प्रवृत्ताः ।।
[नवसाहसांकचरित ५] मत मेण्ठ सहा कवि संसार में सर्वोत्कर्षशाली है जिनकी वाणी तलवार की धार के समान वैदर्भी रीति का अवलम्बन करके प्रवाहित होती रहती है । इस पद्य में भर्तृ मेण्ठ के काव्य में वैदर्भी रीति की प्रधानता सूचित करते हुए उसकी अत्यन्त प्रशंसा और उसके प्रति मादर भाष को प्रकट किया गया है। उन्हीं पद्मगुप्त ने भर्तृ मेण्ठ की प्रशंसा में दूसरा श्लोक निम्न प्रकार लिखा है
पूर्णेन्दुबिम्बादपि सुन्दराणि, तेषामदूरे पुरतो यशांसि । ये भर्तु मेष्ठादिकबीन्द्रसूक्ति
व्यक्तोपविष्टेन पया प्रयान्ति ॥" [नवसाहसांकचरित ] मर्थात् जो नवीन कविगण भतृ मेण्ठ जैसे कवीन्द्र की सूक्तियों द्वारा स्पष्ट रूप से उपविष्ट मार्ग पर चलते हैं, अर्थात् भर्तृ मेष्ठ के समान वैदर्भी रीति का अवलम्मान करते है उनको शीघ्र ही पूर्णिमा के मन्द्रमा से भी अधिक सुन्दर यश प्राप्त होता है । इस प्रकार हम देखते हैं किन केवल राजशेखर ही भर्तृमेण्ठ के प्रशंसक है, अपितु पयाप्त भी उनके वैसे ही भक्त और प्रशंसक प्रतीत होते हैं.। 'सूकमुक्तावली तया 'शाङ्गाधरपद्धति' भी भतु मेष्ठ का गुणगान कर रही है। इन्हीं प्रसिद्ध कविराज भ मेण्ठ ने 'हयग्रीववर्ष' नामक महाकाव्य की रचना की थी।
काश्मीर के इतिहास 'राजतरंगिणी'. में ऐसी कथा दी हुई है कि भत् भेण्ठ अपने 'हयग्रीन वध' नामक नवनिर्मित महाकाव्य को लेकर काश्मीराधिपति मातृप्त के यहाँ गए। वहाँ उन्होंने अपना सारा महाकाव्य राजा को सुनाया, पर यहां उन्हें एक बार साधुवाद प्राप्त नहीं हुपा म उनको राजा की परसिकता और अपने प्रकवित्व दोनों पर बड़ी पनि हुई। दे अपनी पुस्कार ! बाप मगे तो राजा ने उठकर एक सोने का पात्र उसके नीचे लगा दिया कि कहीं इसकाव्य का माधुर्य नीचे न बिखर जाय । म मेष्ठ राजा के हृदय का भाष समझ कर अत्यन्त बाहुए, और उन्होंने अनुभव किया कि मुझे मेरी रचना के अनुरूप मादर ाप्त हो गया। इससे अफोको समम मार, बाद में रामानेसको जो पनादि दिया वह 6 उनको अनावश्यक . सा प्रतीत हुपा । राजतरंगिणीकार ने इस सुन्दर घटना का उलल बिनम र किया है
हयग्रीववषं मेस्तदने संयन् न । मासमाप्ति तो नापत् साधु साध्विति वा पत्रः ।। अथ अपयितुं तस्मिन् पुस्तकं प्रस्तुरे न्ययात् । मावण्यनिर्यावधिया - RATOR :
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