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________________ (v) के लक्षण के अवसर पर बिलाए है। ध्वन्यालोक [उद्योत २, १३३] ध्वन्यालोकलोचन [ उद्योत ३, १४८] शृङ्गार प्रकाश' [० १२१८६, २०१]. 'भावप्रकाशन' [०७, २०० २१२] आदि में भी इस नाटक का उल्लेख पाया जाता है। ध्वन्यालोक -कांचन [ उद्योत ३. ५० ४४८ ] के उल्लेख से ही यह विदित होता है कि इस नाटक के कर्त्ता यशोवर्मा है। क्षेमेन्द्र के |सुसतिलक' [२, ३९ ३ २२] तथा वल्लभदेव-संग्रहीत सुभाषितावली' [१० ६०४] में यशोवर्मा की कृतिरूप ये कुछ श्लोक उद्धत किए गए हैं। वे सम्भवत इसी नाटक से लिए गए है । यशोवर्मा नाम के एक राजा कन्नौज में हुए हैं। उनका काश्मीरराज ललितादित्य से युद्ध हुआ था, चोर उम युद्ध में यशोवर्मा को पराजय का दुःख देखना पड़ा। उनके इस युद्ध का वर्णन 'राजतरंगिणी' में किया गया है कविवाक्पति राजभवभूत्यादिसेवितः । जितो ययो शोवर्मा तद्गुणस्तुतिवन्दिताम् ॥ 'प्रभिवनभारती' श्रादि के निर्माता अभिनव गुप्त के लगभग २०० वर्ष पूर्व उनके पूर्वज प्रत्रिगुप्त इन्हीं कान्यब्जेश्वर यशोवर्मा के यहां रहते थे। इस युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद काठमीर नरेश बड़े सम्मान पूर्वक उनको अपने यहां लिया ले गए थे। अभिनवगुप्त ने स्वयं अपने 'तंत्रालोक' ग्रन्थ में इस घटना का वर्णन निम्न श्लोकों में किया है नि दोषशास्त्रसदनं किल मध्यदेशः, तरिमन्नजायत गुणाभ्यधिको विजन्मा | को व्यत्रिगुप्त इति नामनिरुतगोत्र :, शास्त्राब्धिचर्वणकलोखदगस्त्य गोत्रः ।। तम ललितादित्यो राजा स्वकं पुरमानयत् । प्रवरभसाद काश्मीराख्यं हिमालय मूर्धजम् ॥ [गजतरंगिणी त० ४, १४४ ] [मन्त्रालोक, म० २७] इन यशोवर्मा के यहाँ विद्वानों का संग्रह था। कवि वाक्पतिराज भवभूति भादि इन्हीं की राजमभा में रहते थे। सम्भव है इन्हीं यशोवर्मा ने इस 'रामाभ्युदय' नाटक की रचना की हो । यह नाटक भी अब तक उपलब्ध या प्रकाशित नहीं हुआ है । * ३०. रोहिणी मृगा नाटपदपंण के प्रथम विवेक में 'मुखसन्धि' के 'परिन्यास' नामक तृतीय भङ्ग के निरूपण-प्रसङ्ग मैं - 'यथा वा अस्मदुपशे रोहिणीसुगा भिधाने प्रकरणे मृगाङ्कं प्रति वसन्तः ।' इस रूप में 'रोहिणीमुगाड़' को नाट्यदर्पणकार ने स्वयं अपनी कृति घोषित किया है । आगे फिर 'मुख सन्धि' के परिभावना नामक १२ में अङ्ग के उदाहरण रूप में भी 'रोहिणीमृगा' प्रकरण से एक श्लोक उद्धव किया है। पर यह 'प्रकरण' भी इस समय उपलब्ध नहीं है । Jain Education International ३१. मापामाटिका- 'रोहिली सुगाड़' प्रकरण के समान 'बनमालानाटिका' भी . स्वयं नाट्यदर्पणकार की कृति है। हंडा कि उन्होंने तृतीय विवेक में २१ वीं कारिका की व्यास्त 'पाइन सम्मों 7: किया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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