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________________ बहष्ट्टिप्पणी पर रखके भागार पर पानी' मारि . ३३८] इस बनमामा नाटिका को अमरचन्द्र की गति तनामा है। किन्तु यह ठीक नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि रामचन्द्र स्वान पर मुंब.से प्रचन्द्र लिख दिया गया है। गणि-कान्तिविरुष के लिए प्राचीमान्दा सूविपत्र' में तो 'प. रामचन्द्रकसा वनमालामाटिका नोक..[पुरातल पु०.६.४,४२४. ४२८] इन शब्दों में 'बममामा माटिका' को रावण की इतिही सावा है। समाटिका का केवल एक ही उदाहरण नाट्यदर्पण में दिया गया है, और यह सवा मल की बाबतीत उक्ति के रूप में है। इससे प्रतीत होता है कि उस माटिका की रपमा भी मल- बन्ती परित को लेकर की गई है। किन्तु यह नाटिका भी इस समय तक उपलब्ध क प्रकाशित नहीं हुई है। (३२) शिपिविलसितम्-माट्यर्पण के प्रथम विवेक में विमर्श सन्ति के समय के प्रसङ्ग [का० ३९) में विषिवितधितन' का केवल एक उद्धरण निम्न प्रकार दिया है देवतो यया विषिविलसिते पामे"चुकी-हा विक् कष्टम्, नबोल्लभ्यः प्रानः कर्मविपापवार्ताऽपि नैव यविहास्ति सं राषचन्द्रः तेनोज्झिता विधिविमोहितचेतनेन ।' देवा वने त्रिदशनापविलासिनीमिः, कतुं गता जगति सस्पमिति प्रवादः॥" इस उदाहरण की लक्षण के साथ योजना करते हुए नाट्यदर्पणकार ने लिखा है-. "पत्र सूदाचारावलम्बिनि नले देवत्यक्त-दमयन्ती-राज्यप्राप्तिविधनको विमर्शः।" इस पंक्ति से स्पष्ट प्रतीत होता है कि नल-दमयन्ती के चरित्र को लेकर इस नाटक का रचना की गई थी। किन्तु इसका निर्माता कौन था इसका कुछ पता नहीं पलता। नाटक भी अब सक उपलब्ष तथा प्रकाशित नहीं हुमा है । __३३. विलक्षाबुर्योधनम-नाट्यदर्पण के प्रथम विवेक में 'प्रतिमुख-शनि के शवम मा 'पुष्प' के उदाहरण [का० ४६] रूप में यथा विलभदुर्योधने-भीष्मः एतते हदयं स्पृशामि यदि का साक्षी तवैवात्मक, सम्प्रत्येव तु नोहे यवमवत् तत् तावदाकर्म्यताम् । एक: पूर्वमुवायुषैः स बहुभिहस्ततोऽनन्तरं यावन्तो वयमाहवप्रणयिनः तावन्त एवापुंनाः॥ इस एक उदाहरण के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी विलादुर्योधन का नाम नहीं मिलता है। इस लिए यह नहीं कहा जा सकता है कि इसका कर्ता कोन है । वह नाटकमा सकराषित भी नहीं हुपा है। ३४. सुपाकल-'माट्यपंख' के द्वितीय विवेक में बीबी मुहब' भामक के.निरूपण में 'यथा प्रस्मदुपड़े सुधाकमशे' पोर 'पपा सुपाकल इन अवतरसिकायों के साथ दो पसोक उपाहरण रूप में प्रस्तुत किए है। ये दोनों ही नोक प्राकृत भाषा है। इससे हमतील होता है कि यह 'सुपाकमशः' नाट्यदर्पणकार रामचनको सुन्दर गापामयी बया भाव-माया प्रधान इति है। यह कोई नाटकमा कलही..अनिए गुणापि सहवास और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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