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________________ बातो घोषभुवा विधृत्य मधुजित्, कंस: क्षयं लम्भिता, सम्प्रत्येव विनिर्मितं मगधभूभ: कवन्धं वपुः । पादाक्रान्तमजायताईभरतं तद् अहि नः किं परं? सेयोऽस्मादपि पाण्डवेश! पुनरप्याशास्महे यद् वयम् ।। [नाट्यदर्पण १-६१] यह नाटक यों तो स्वयं नाटपदर्पणकार रामचन्द्र का बनाया हमा है, किन्तु अब तक अनुपलब्ध और अप्रकाशित है । प्रतः यहां उसका समावेश किया गया है। २६. रविलासम्-ग्रन्थकार के परिचय के प्रसङ्ग में 'रघुविलास' का जो उद्धरण हम ऊपर दे चुके हैं उससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह 'रघुविलास' नाटक नाटघदर्पणकार रामचन्द्र को अपनी कृति है, और वह उनके सर्वश्रेष्ठ पांच नाटकों में से एक है। नाटघदपंण में उन्होंने अपने इस नाटक के १४ उदाहरण दिए हैं। किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि स्वयं नाट्यदर्पणकार का यह नाटक भी प्राज तक उपलब्ध तथा प्रकाशित नहीं हो सका है। २७. राघवाभ्युदयम्-'यादवाभ्युदय के समान यह 'राघवाभ्युदय' नाटक भी नाटपदपंणकार रामचन्द्र का अपना बनाया हुमा नाटक है, और उनके सर्वोत्तम पांच नाटकों में गिनाया गया है। जैनसाहित्य संग्रह खं० १ ० २ की 'राघवाभ्युदयं नाटकं पं० रामचन्द्र कृतं १० मम्' इस टिप्पणी से प्रतीत होता है कि यह नाटक दस ग्रहों का बड़ा नाटक है। किन्तु अन्य कृतियों के समान अब तक अनुपलब्ध मोर पप्रकाशित है। २६. राधाविप्रलम्भम्-'नाटयदर्पण' के प्रथम विवेक के भात में 'यथा भेजलविरचिते राधाविप्रलम्भे रासकाङ्क परिकर-परिन्यासयोरुपक्षेपेणंव गतवान तन्निबन्धः । एवं परस्परान्तर्भावे चतुरङ्गोऽपि क्वापि सन्धिर्भवति ।" इस रूप में ग्रन्थकार ने 'राधाविप्रलम्भ' को भेज्जल-कवि विरचित रासकार बतलाया है। इसका उल्लेख मभिनवभारती में भी भाया है पौर वहां इसका एक श्लोक निम्न प्रकार उद्धृत किया गया है-- मेधाविशिखण्डि-ताण्डवविधावाचार्यकं काल्पयन् निर्झयो भुरजस्य मूर्छतितरां वेगुस्वनापूरितः । वीणायाः कलयन् लयेन गमकानुग्राहिणीं मूच्र्छनां कलंत्येष च कालकुट्टितलयां रम्यश्रति षाडवे ।" - [अभिनवभारती दिल्ली संस्करण पृ० २१] इसी पद्य को अभिनवभारती के पंचमाध्याय में फिर 'भेज्जलनाम्ना निजरूपके उक्तम्' [म. ५ पृ० २१४ प्र० ६] इस अवतरणिका के साथ उद्धृत किया है। 'शृङ्गारप्रकाश' में 'यया रासकाङ्क' प्रि० १२, पृ० १८२] इन शब्दों में कदाचित इसी 'रासकार का उल्लेख किया गया है। २६. रामाभ्युदयम्-नाटघदर्पण में अन्यकार के नाम का उल्लेख किए बिना स्थानों पर 'रामाभ्युदय नाटक' के उद्धरण दिए गए है। इस नाटक के द्वितीया से सीता के प्रति सुग्रीव की सन्देशोक्ति, मारीच, राषण और प्रहस्तहा संवाद. दिए गए है। अर्थ मळू से सीता के पग्नि-प्रवेश प्रादि 'परिपूहन' के उदाहरण मे, सीता-परिवान का मवमानन 'पल साहरण में, भाषा-शिरोमन 'पारपटी' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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