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२३. मल्लिकामकरग्यम् - यह रामचन्द्र का aers बनाया 'प्रकरण' रूप है। 'नाट्यदर्पण' के तृतीय विवेक की २१वीं कारिका की व्याख्या में 'यथा वा अस्मदुपश मल्लिकामकरन्दे प्रकरणे -
इस रूप में 'मल्लिकामकरन्द' का उदाहरण केवल एक धार दिया गया है। भाज से ३०० वर्ष पहिले १७वीं शताब्दी में कान्तिविजयगरण द्वारा तैयार किए गए सूचीपत्र में 'तस्यैव [ पं० रामचन्द्रस्य ] मल्लिकामकरन्दनाटकम्' १५०० । [पुरातत्व पु० दे० प्र० ४ ४२४- १२८ ] इस रूप में मल्लिकामकरन्द. को रामचन्द्र का नाटक बतलाया है। किन्तु यह ठीक नहीं है । क्योंकि ग्रन्थकार ने स्वयं उसे 'नाटक' के स्थान पर 'प्रकरण' कहा है । १५०० इलोक अर्थात् मनुष्टुप् इसका परिमाण था, किन्तु यह ग्रन्थ भब तक प्रप्राप्य भोर अप्रकाशित है ।
प्रास्यं हास्यकरं शशाङ्कयशसां बिम्बाधरः सोदरः पीयूषस्य वचांसि मन्मथमहाराजस्य तेजांसि च । दृष्टिविपचन्द्रिका, स्तनतटी लक्ष्मीनटीनाटघभूः प्रौचित्याचरणं विलासकरणं तस्याः प्रशस्यावधेः ||
२४. मायापुष्पकस्- 'नाटयदर्पण' के प्रथम विवेक में 'बीज' का निरूपण करने बाली २१वीं कारिका की व्याख्या में -
heet मायापुष्पके शापः प्रविश्य वचनक्रमेणाह -
इस रूप में मायापुष्पक का उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार आगे पताका लक्षण के प्रसंग में [का० ३३] फिर 'यथा मायापुष्पके' लिख कर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. इन उदाहरणों से प्रतीत होता है कि यह नाटक है और रामचन्द्र की कथा को लेकर लिखा गया है । अभिनवभारती [ श्र० १३ पू० २१६, अ० १९ पृ० १०, म० २२ पृ० १६९ ] में भी तीन वार इसका उल्लेख हुआ है, मौर कुन्तक के 'वक्रोक्तिजीवित' का जो उद्धरण हम अभी 'कृत्यारावण' की विवेचना (९० ३८) में दे पाए हैं उसमें भी 'मायापुष्पक' के नाम का उल्लेख है । किन्तु इस नाटक का कर्ता कौन है इसके विषय में कोई पता नहीं चलता है, और न यह नाटक अब तक प्रकाशित ही हुधा है ।
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कैकेयी वव पतिव्रता भगवती क्वैवंविधं वाग्विषं, धर्मात्मा कर रघूदहः क्व गमितोऽरण्यं सजायानुजः । क्व स्वच्छ भरतः क्व वा पितृवधान्मात्राऽधिकं दह्यते किं कृत्वेति कृतो मया दशरथेऽवध्ये कुलस्य क्षयः ॥ "
२५. माययाभ्युबबन - यह नाटक स्वयं नाट्यदर्पणकार रामचन्द्र कवि का बनाया हुआ है । 'यथा वा वस्मयुपश एव यादवाभ्युदये लिख कर ग्रन्थकार ने अपने इस नाटक से सात स्थानों पर उदाहरण उद्धृत किए हैं । ग्रन्थकार के परिचय के प्रसङ्ग में हमने उनके 'रघुविलास' नाटक के प्रमुख से जो उद्धरण दिया था उसमें उनकी सर्वश्रेष्ठ पांच नाटकों में इस 'यादवाभ्युदय नाटक' का भी नाम है। जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत होता है इसमें यदुवंशी कृष्ण के चरित्र का वर्णन है । कंस और जरासन्ध प्रादि भारत पर कृष्ण के साम्राज्य का प्रदर्शन उसके काव्योपसंहार के निम्न श्लोक
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