SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह नाटक तो नहीं मिलता है, किन्तु इस श्लोक में उसके कर्ता माविका पर्याप्त परिचय दे दिया गया है । इसके अनुसार 'अभिनवराघव' के निर्माता क्षीरस्वामी, भट्टन्दुराज के शिष्य है। ये भद्देन्दुराज अभिनवगुप्त के भी गुरु है । ध्वन्यालोक की 'लोचन' टीका में प्रभिनवगुप्त ने इनका उल्लेख निम्न प्रकार किया है भट्टेन्दुराजचरणाजकृताधिवास, हृद्यश्रुतोऽभिनवगुप्तपदाभिषोऽहम् । यत् किंचिदप्यनुरणन् स्फुटयामि काव्या लोकं सुलोचन-नियोजनया जनस्य ।। यथाऽस्मदुपा यायभटेन्दुराजस्य ।" [ध्वन्यालोकलोचन पृ० ४३, ११६] इससे प्रतीत होता है कि अभिनवराघव के निर्माता पौर स्वामी कदाचित मभिनवगुप्त के सहपाठी हैं । 'नाट्यदर्पण' के अतिरिक्त (१) कल्हण कृत राजतरंगिणी, [तरंग ४, श्लोक ४९९], (२) अमरकोश के व्यापाता क्षीरस्वामी, (३) हेमचन्द्राचार्यकृत सिद्धहेमशब्दानुशासन [म. १, पु. ४४]. तथा हेमचन्द्र की ही 'मभिधानचिन्तामणि' की स्वोपशनामभावाविवृति [५० ३६०, ४६१] में भी क्षीरस्वाम' के नाम का उल्लेख पाया जाता है । ये सब क्षीरस्वामी कदाचित् एक ही व्यक्ति रहे होंगे। उस दशा में क्षीरस्वामी ने मभिनवगुप्त के काल में ही रामचन्द्र के चरित को लेकर अपने इरए 'अभिनवराघवम्' नाटक की रचना की होगी। पर यह इस समय उपसम्प नहीं हो रहा है। (४) पर्जुनचरितम्-नाटघदर्पण के तृतीय विवेक में विरुद्ध रसों के विरोध या पविरोध की व्यवस्था के प्रकरण [का० १-२३] में 'अर्जुनचरित' का एक श्लोक केवल एक बार निम्न प्रकार उद्धृत किया गया है-- यथा प्रचुनचरिते समुत्थिते धनुर्वनी भयावहे किरीटिनः । महानुपप्लवोऽभवत् पुरे पुरन्दरविषाम् ॥ पत्र नायकस्य वीरः, प्रतिपक्षाणां तु भयानकः।" 'मर्जुनचरित' के लेखक का यहां नाटयदर्पणकार ने कोई उल्लेख नहीं किया है किन्तु इसके निर्माता ऽवन्यालोककार मानन्दवर्धन है। यह मानन्दवर्धन का लिसा एक महाकाव्य है। मानन्दवर्धन ने अपने ध्वन्यालोक में दो बार इसका उल्लेख निम्न प्रकार किया है "विपक्षविषये हि भयातिशयवर्णने नायकस्य भयपराक्रमादिसम्पत् सुतरामुघोतिता भवति । यथा मदीये मलुनचरिते अर्जुनस्य पातालावतरणप्रसङ्गे वैशन प्रदर्शितम् ।" मानन्दवर्घन का यह अर्जुनपरित नाटक नहीं अपितु महाकाव्य है इस बात का उल्लेख भी उन्होंने स्वयं ही किया है "यथा र मदीय एव पर्जुन चरिते महाकाव्ये x x x" .. रुद्रट के काव्यालङ्कार, की. टीका में 'ममि सानु' - 'पर्युनचरितं भानन्दवर्षनाचार्यप्राकृतकाव्यम्' लिख कर समपरित की साफत का काम्य बतमाया । किन्तु उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy