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यह कथन ठीक नहीं है। जो इसोक यहाँ मापदणकार ने उस किया है वह संस्कृत का प है, इसलिए यह स्पष्ट है कि अर्जुनचरित प्रानन्दवर्धनाचार्य का संस्कृत महाकाव्य है । नमिसाधु मे बिना देखे हो अनुमान से उसे प्राकृत काव्य कह दिया है। यह काव्य इस समय उपलब्ध नहीं है, इसलिए उसका नाम प्रसिद्ध ग्रन्थों की सूची में दिया है।
(५) इन्दुलेखानाटिका - नाटचदर्पण के प्रथम विवेक में निर्वहण अधि के काव्यसंहार नामक धन के निरूपण के प्रस में कारिका ६५ ] सत्यकार ने इन्दुलेला नाटिका का एक प्राकृत भाग उद्धृत किया है [ना० द० १४६५] । किन्तु इस नाटिका का कर्ता कौन है ? इसका कोई परिचय प्रभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है।
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(६) इग्बुसेलावीषी - नाटघदर्पण के द्वितीय विवेक में 'बोथी' के पांचवें भङ्ग [का० ३३] के निरूपण के प्रसज्ञ में
"यथा इन्दुलेखायो वीच्याराजा - वयस्य !
किं नु कलहंसनादो, मधुरो मधुपायिनां तु भंकारः ? हृदयगृहदेवतायास्तस्या
सनूपुरुष रणः ॥"
नु
यह एक श्लोक उद्धृत किया है। महाराज भोज के 'श्रृङ्गार प्रकाश' (१२-१८८] तथा शारदातनय के 'भावप्रकाशन' [ अधिव, पृ० २३१] में भी यही पक्ष इसी नाम से उड़त किया गया है। किन्तु 'भावप्रकाशन' में 'हृदयगतदेवतायाः' के स्थान पर 'हृदयगतवेदनायाः ' पाठ दिया गया है। नाटघदर्पण तथा शृङ्गारप्रकाश का पाठ एक ही है, और अधिक मच्छा पाठ है । जैसा कि नाम से हो प्रकट है 'इन्दुलेखा नाटिका' तथा 'इन्दुलेखा वीथी' एक ही कथानक पर ऊपर लिखे हुए दो अलग ग्रन्थ हैं, किन्तु दोनों में से किसी के भी कर्ता का पता नहीं मिलता है ।
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(७) उदयमचरितम् - नाटयदर्पण के तृतीय विवेक में आरभटी वत्ति के निरूपण मैं 'ख' के उदाहरण रूप में 'उदयनचरितं किलि जहस्तिप्रयोगः' (पू: १४० ) इस रूप में 'उदयन चरित' का उल्लेख किया है । 'दशरूपक' को 'मवलीक' टीका में [२] ५७, और साहित्य दर्पण [ ६-१३५ ] मैं भी इसी रूप में उदयनचरित्र का उल्लेख किया गया है। वैसे उदयन की कथा संस्कृत साहित्य में प्रत्यन्त प्रसिद्ध और बड़ी व्यापक कथा है। मूलतः उदयन का चरित बृहत्कथा से लिया गया है, और उसके साधार पर अनेक नाटकों की रचना हुई है । सम्भव है उसके आधार पर 'उदयन efer' ares feet नाटक की रचना हुई हो । पर वह न उपलब्ध है मोर न उनके कर्ता का कोई पता चलता है। यहां जिस रूप में उसका उल्लेख हुआ है उसके किसी विशेष नाटक के रूप में नहीं, खिमान्य रूप से उदयन-कथात्मक स्वयनचरित का ग्रहण करने से भी काम वच सकता है। ऐसे माह के काव्योलङ्कार में विजिगीषुमुपन्यस्य वत्सेशं वृद्धदाम' [ ४-१९], कालिदास के मत में 'प्राप्यायन्ती मुदयन कथाकोविदप्रामवृक्ष प्राचार्य हरिभद्रसूरि के 'प्रावश्वक सूत्रवृत्ति' में [पू० ६६-६७, ६७३,६०५], प्राचार्य हेमचन्द्र विरचित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरिते' [पर्य० १० स १११८४-२६५ ], सोमप्रभ के कुमारपाल प्रतिबोध [ ८०-५९] मादि जन-ग्रन्थों में भी समान रूप से उदयन की कथा का उल्लेख मिलता है । था बात इस कथा की प्रत्यन्त लोकप्रियता की सूचक है ।
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( 5 ) उदासराघवम् नाटघवर्षण में 'उदातराघव' नाटक कम किया गया है। पहली बार प्रथम विवेक की ४५ वीं की
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उससे तीन धरी बाद
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