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________________ 'क्षुद्रकथा मन्थुल्ली येह महाराष्ट्रभाषया भवति । गोरोचनेव कार्या सानङ्गवतीव वा कविभिः ।।" [शृंगारप्रकाश ११-१४७] "प्रेतमहाराष्ट्रभाषायां क्षुद्र कथा गोरोचनानङ्गवत्यादिवत् मन्थल्लिका। क्षुद्रकथा मन्थल्ली प्रेत महाराष्ट्रभाषया भवति । गोरोचनेव कार्या सानङ्गवतीव वार्कचेटी [कवि मिः॥" काव्यानुशासन सविवेक नि० सा० पृष्ठ ३३६] "क्षुद्रकथा मत्तल्लिका येह महाराष्ट्रभाषया भवति । गोरोचतेक कार्याऽनङ्गवती मावरसविधा ॥" [भावप्रकाशन पृ० २६७, अधि] इन तीनों ग्रन्था में जिस “पनंगवती' का उल्लेख मिलता है यह नाट्यदर्पण में उद्धृत 'भनंगवती' माटिका से भिन्न कोई और ही चीज है। क्योंकि 'नाट्यदर्पण' को 'प्रनंगवती नाटिका' जैसा कि उसके 'पूर्वरंगान्त स्थापकः' इस उतरण से प्रतीत होता है। संस्कृत भाषा में लिखी गई नाटिका है, और 'शृगारप्रकाश' प्रादि तीनों ग्रन्थों में उल्लिखित 'गोगेचना अनंगवती' महाराष्ट्र को प्रेत भाषा में लिखी हुई कोई क्षुद्र कथा है जिसे महाराष्ट्र भाषा में 'मन्थुल्ली' कहते हैं। इस लिए 'नाटपदपंण" की अनंगवती नाटिका' उससे बिल्कुल भिन्न है। कमेन्द्र की 'बृहत्कथामंजरी' [५१८-१९] में एक अनंगवती के चरित का उल्लेख मिलता है । सम्भव है कि 'नाट्यदर्पण' वाली 'मनंगवती नाटिका' की रचना इसी कथा के प्राधार पर की गई हो, मौर जैसे उदयन-वासवदत्ता की कया के प्राधार पर अनेक नाटकों की रचना हुई है. इसी प्रकार 'अनंगवती' की यह कथा भी महाराष्ट्र की प्रेत भाषा में क्षुद्र कथा के रूप में प्रसिद्ध हुई हो। इस सबके होने पर भी 'नाटयदर्पण' की 'अनंगवती नाटिका' के कर्ता मादि का विषय बिल्कुल अन्धकार में रहता है । २. मनङ्ग सेनाहरिनन्धिप्रकरणम्-'नाट्यदर्पण' के प्रथम विवेक में 'अमर्श सन्धि' के पांचवें भंग 'छादन' के निरूपण में अन्य कार ने ___"यथा श्री शुक्तिवासकुमारविरचिते मनंग सेना-हरिनन्दिनि प्रकरणे नवमेऽङ्क राजपुत्र चन्द्रकेतुना दत्त कर्णालङ्कारयुगलं नायिकया माधव्या नायकस्य प्रेषितम् ।" इत्यादि रूप में 'मनंगसेना-हरिनन्दिप्रकरणम्' का उल्लेख किया है, और उसे 'शुक्तिवास कुमार' की कृति बतलाया है। किन्तु ये 'शुक्तिवासकुमार' कौन है ? इसका कुछ पता नहीं चलता है। इसलिए उनके काल प्रादि का निश्चय नहीं किया जा सकता है। .. अभिनवराघवम्-नाटपदपंण के तृतीय विवेक में 'प्ररोचना' के लक्षण के प्रसंग में ग्रन्थकार ने निम्न प्रकार से केवल एक बार इस नाटक का उल्लेख किया है "यया क्षीरस्वामिविरचितेऽभिनवराघवेस्थापक:-(सहर्षम्) मायें ! चिरस्य स्मृतम् । मस्स्येव राघवमहीनकथा पवित्र, काव्यप्रबन्धघटना प्रथितप्रथिम्नः । मद्देन्दुराज-चरणाम्जमधुव्रतस्य, क्षीरस्य नाटकमनन्यसमानसारम् ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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