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________________ मोदयार्पण के उदाहरण ___ नाट्यदर्पण का विषय-प्रतिपादन जैसे दशरूपक की अपेक्षा अधिक विशद् पोर विस्तुत है, इसी प्रकार उसके उदाहरणों का क्षेत्र भी दशरूपक की अपेक्षा कहीं अधिक व्यापक है । रामचन्द्रगुणचन्द्र ने अपने प्रतिपाद्य विषय के स्पष्टीकरण के लिए इस पम्प में जो उदाहरण प्रस्तुत किए है वे प्रायः ६३ नाटकों से लिए गए हैं। इन ६३ नाटकों की सूची बहुत लम्बी है। दशरूपक में यह बात कहाँ है ? इन ६३ नाटकों में ११ नाटक तो स्वयं रामचन्द्र के अपने बनाए हुए नाटक है। भवभूति के (१२) उत्तर रामचरित (१३। महावीर चरित और (१४) मालती माषव तीनों नाटक इस सूची में उपस्थित है। इसी प्रकार कालिदास के (१५) अभिज्ञान शाकुन्तल, (१६) विक्रमोर्वशीय तथा (१७) मालविकाग्निमित्र इन तीनों नाटकों के उदाहरण इसमें प्रस्तुत किए गए है। यह बात विशेष रूप से उल्लेख योग्य है कि इसमें 'मालविकाग्निमित्र' का नाम सर्वत्र 'मालतिकाग्निमित्र' दिया गया है। विशाखदेव कृत (१८) मुद्राराक्षस नाटक के साथ उनके (१९) देवीचन्द्र गुप्त नाटक के उदाहरण भी इसमें दिए गए हैं। मुरारिकवि के (२०) अनर्घराषव, श्रीहर्ष के (२१) नागानन्द, भोर (२२) रत्नावली, (२३) शूद्रक के मृच्छकटिक, (२४) भट्ट नारायण के वेणीसंहार के उदाहरण भी दिए गए हैं । (२५) मास के स्वप्नवासवदत्तम् तथा (२६) दरिद्रचारुदत्तम् नाटकों का उल्लेख इसमें पाया है । इसमें विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि भास के स्वप्नवासवदत्तम् से 'पादाक्रान्तानि पुष्पाणि' इत्यादि एक ही श्लोक (का० ५३ में अनुमान के उदाहरण रूप में दिया गया है किन्तु वह इलोक 'स्वप्नवासवदत्तम्' के वर्तमान मुद्रित संस्करणों में नहीं पाया जाता है। मोर भास के 'चारुदत्त' का यहां 'दरिद्र चारुदत्त' नाम से उल्लेख किया गया है । (२७) कुन्दमाला नाटक के उदाहरण भी पाए हैं। रामचन्द्र-गुणचन्द्र ने उसे 'वीरनाग' की रचना बतलाया है जबकि वर्तमान उपलब्ध 'कुन्दमाला' नाटक दिङ्नाग की कृति है । सम्भव है दिङ्नाग का ही दूसरा नाम 'वीरनाग' हो। अमात्य शकुक के (२८) 'चित्रोत्पलावलम्बितम्' नाटक के उदाहरण भी इसमें दिए है। पता नहीं यह शंकुक भरत के व्याख्याकार शंकुक हैं या कोई दूसरे । बाणभट्ट की (२९) कादम्बरी. (३०) कालिदास के कुमारसम्भव, गुणाल्य की (३१) बृहत्कथा, व्यास के (३२) महाभारत पौर भर्तृ मेण्ठ के (३३) हयग्रीववध के उदाहरण भी दिए गए हैं । ये ३३ ग्रन्थ तो प्रायः प्रसिद्ध ग्रन्थ है। किन्तु इनके अतिरिक्त प्रायः ३० ऐसे ग्रन्थों के उदाहरण भी रामचन्द्र गुणचन्द्र ने अपने इस नाट्यदर्पण में प्रस्तुत किए हैं जो अत्यन्त मप्रसिद्ध है, और अब तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। उनका कुछ थोड़ा सा परिचय देना आवश्यक है । प्रतः हम इनका सामान्य परिचय नीचे दे रहे हैं। नाट्यदर्पण में उन त ३५ अलभ्य प्रन्थ १. अनङ्गवती नाटिका-नाट्यदर्पण के तृतीय अनुस्छेद के प्रारम्भ में तीसरी कारिका की व्याख्या में पूर्वरङ्ग के अन्त में 'स्थापक' द्वारा 'भामुख' के अनुष्ठान के उदाहरण के लिए "तथा च 'अनङ्गवत्या नाटिकायां दृश्यते 'पूर्वरङ्गान्ते स्थापक' इति" इस रूप में मनमवती 'नाटिका' का उल्लेख केवल एक बार किया गया है। और कहीं भी इसका उल्लेख नहीं मिलता है। इसका निर्माण किसने और कब किया इसका परिचय प्राप्त होना सम्भव नहीं है । ग्रन्थ के मलम्य होने से उसकी कथा वस्तु का भी पता नहीं चल सकता है । भोज के 'शृङ्गारप्रकाश' [११-१४७]. हेमचन्द्र के 'काव्यानुशासन' [८,३३९] तथा शारदातनय के 'भावप्रकाशन' (पृ. २६७ मधि ९] में 'प्रवङ्गवती' का उल्लेख निम्न प्रकार मिलता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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