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________________ ४०० ] नाट्यदर्पणम् । का० २०३, सू० २९७ किंच[सूत्र २६७]-मित्राख्याभिर्विदू राजा कुमारो भर्तृ दारकः । मुनि-शाक्यौ भदन्तेति स्वप्रसिद्धघाऽपरो व्रती ॥ [५०] ३०३ ।। सूत्री भावोऽनुगेनासौ तेन मार्षः समः सखा । शिष्यात्मजानुजाः पुत्र-वत्सौ तातो जरन्नपि । [५१] २०४ ॥ सौम्यो भद्रमुखश्चेति नीचो हण्डे तु पामरैः । येन कर्मादिना यस्तु ख्यातः स तदुपाधिकः ॥ [५२] २०५॥ वयस्य-सखीत्यादयो मित्राख्याः। ताभिविदूषको राज्ञा सम्बोध्यः। सूत्रत्वाच्च 'विद्' इत्येकदेशनिर्देशो न विरोधी । कुमारो युवराजः कौमारे वयसि वर्तमानो ऽन्यो वा एष भर्तृ दारक इति, भर्तृ दारको वा 'कुमार' इत्यामधातव्यः । एवं कुमार्यपि षकोंके द्वारा राजाको 'वयस्य' कहकर और अपि शब्दसे 'राजन्' इस पदसे भी सम्बोधित किया जा सकता है। प्रथमों अर्थात् नीच प्रकृति वालोंके द्वारा राजाको 'भट्टी' शब्दसे सम्बोषित किया जाता है। उत्तम, मध्यम तथा अषम प्रकृतिके सामान्य लोगोंके द्वारा राजाको 'देव' कहकर सम्बोधित किया जाता है। [४८-४६] २०१-२०२॥ और भी [इसी विषयमें प्रागे कहते हैं] [सूत्र २९७]-राजां विदूषकको मित्र-वाचक पदोंसे सम्बोधित करता है। स्वामीके पुत्रको कुमार पवसे कहा जाता है। जैन तथा बौद्ध भिक्षु भवन्त' पदसे सम्बोषित होते हैं । अन्य व्रती [तपस्वी] लोग अपने-अपने सम्प्रदायमें प्रसिद्ध नामोंसे सम्बोधित होते हैं। [५.] २०३। सूत्रधारको उसका अनुचर 'भाव' शब्दसे पुकारता है। और वह अर्थात् सूत्रधार उस [अनुचर] को 'माष' कहकर सम्बोषित करता है। बराबर वालेको 'सखा' कहकर और शिष्य, पुन तथा छोटे भाईको क्रमशः पुत्र, वत्स तथा तात कहकर सम्बोषित किया जाता है। तात शब्बसे वृक्ष जनोंको भी सम्बोधित किया जाता है।[५१] २०४ । नोध पुरुषको [मध्यम तथा उत्तम पुरुषों के द्वारा] सौम्य भद्रमुख कहकर और नीचों के द्वारा [नोचको हो] हरेकहकर सम्बोधित किया जाता है। और जिस कार्यके द्वारा . जिसकी प्रसिद्धि है उस कार्यको करने वाला उस-उस पदसे सम्बोषित किया जाना चाहिए। [५२] २०५॥ वयस्य, सला इत्यादि मित्र-बाधक पद हैं । उनके द्वारा राणा विदूषकको सम्बोधित करता है। [इन कारिकामोंके] सूत्ररूप होनेसे इसमें विदूषक इस पूरे पक्के स्थानपर "विदू इस [माय] पदके प्रयोगमें कोई विरोष नहीं पाता है। कुमार अर्थात् कौमारावस्थामें वर्तमान युवराज । अथवा स्वामी के अन्य पुत्र को 'भत बारक' कहा जाता है । अषदा स्वामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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