SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ----- - ब. २०३, सू० २६६ ] चतुर्थो विवेकः । ३६ भान्यो नामान्तर राजा लिगिनाथ विदूषकः । वयम्यो ऽप्यधर्मभट्टी लोकदेवेति भूपतिः ॥ [४] २०२ ॥ उत्तमप्रकृतिरहिता युवतिःअप्रेषणीया सती अनुत्तमा,सा, प्रेष्याच 'हंजे' शब्देन कीर्त्यते । देवता सरस्वत्यादिका। तपःस्था व्रतविशेषवती। एते च स्वतंत्रे, न तु कंचनापि पतिमाश्रिते । अाः पूज्यतमाः। बहुविद्याः बहुश्रुताः। एते अर्ध्यादयः सयोपितो भार्याप्येतदीया भगवच्छब्देनोच्यते इत्यर्थः । तथा मान्यः प्रसिद्धनामपरिहारेण नामान्तरैः प्रशंसासूचिभिः अमात्य ! श्रेष्ठिन् ! वत्सराज ! सोमवंशमौक्तिकमणे ! इत्यादिभिराभाषणीयः। प्रायिकं चैतत् । तेन चाटुकारादौ-उदयने महों शासति को विपदामवकाशः' इति स्वानाम्नाप्याभाष्यः। ___ मान्यादन्यस्तु मध्यमः स्वनामभिर्वाच्यः । नीचस्य सम्भाषणन्तु वक्ष्याम इति । लिंगिना च 'राजन्' शब्देन शब्द्यते भूपतिः इत्युत्तरेण संबन्धः । उपलक्षणात् 'कौरव्य' इत्याद्यपत्यप्रत्ययान्तैरपि। विदूषकैः पुनर्भूपतिः 'वयस्य' शब्देन अपि शब्दात् 'राजन्' शब्देन च । अधमैश्च नीचप्रकृतिभिभूपतिः भट्टिन्-शब्देन लोकैश्च उत्तममध्यम-अधमप्रकतिभिर्जनैः भूपतिर्देव शब्देन शब्द्यत इति ॥ [४८-४६] २०१-२०२॥ मान्य पुरुषोंको [ उनके असली नामोंको छोड़कर ] अन्य नामोंसे सम्बोधन करना चाहिए। राजाको परिव्राजक मावि 'राजन् पबसे और विदूषक 'वयस्य' पदसे, प्रथम पुरुष 'भट्टी' पदसे तथा साधारण लोकोंके द्वारा 'देव' पबसे सम्बोधित किया जाता है। [४६]२०२॥ ___ उत्तम प्रकृतिसे रहित युवती जो [ दूती प्रादिके रूपमें ] भेजने योग्य नहीं है उसको तथा भेजने योग्य स्त्री [प्रेष्या] दोनोंको हंजे पदसे सम्बोधित किया जाता है। देवता अर्थात् सरस्वती आदि। और तपःस्था अर्थात् किसी विशेष व्रतके अनुष्ठानमें लगी हुई। ये बोनों स्वतन्त्र हों किसी पतिके पाश्रित न हो तब [भगवत् शब्दसे कही जाती है । प्रर्चनीय अर्थात् अत्यन्त पूज्य, और बहुविद्या अर्थात् बहत पूज्य ये प्रय॑ प्रादि संयोषितः' अर्थात अपनी पत्नियोंके सहित, अर्थात् उनकी पत्नी भी 'भगवत्' शब्बसे वाच्य होती है। यह अभिप्राय है। और मान्य जनोंको प्रसिद्ध नाम छोड़कर प्रशंसासूचक दूसरे नामोंसे सम्बोषित किया जाता है। जैसे-प्रमात्य, बेष्ठिन्, वत्सराज, चन्द्रवंशके मौक्तिकमरिण ! इत्यादि [उपनामों] के द्वारा सम्बोधित किया जाना चाहिए। यह कथन प्रायिक है [मर्यात प्रायः अधिकतर इस प्रकारके नामोंसे सम्बोषित करना चाहिए इसलिए चाटुकारिता मावि [खुशामद माषि] के समय 'महाराज उदयनके राज्य में विपत्तियोंका अवसर कहां पा सकता है' इत्यादि. में अपने प्रसिद्ध नाम द्वारा भी सम्प्रेषन किया जा सकता है। मान्यको छोड़कर अन्य अर्थात् मध्यम लोगोंको उनके प्रसिद्ध नामोंके द्वारा ही सम्बो. पित करना चाहिए। नीचके लिए सम्बोषित पदोंको मागे कहेंगे। परिवाजक प्रावि लिंगपारियोंके द्वारा राजाको राजन् पवसे सम्बोषित किया जाता है यह अगले वाक्यके साथ सम्बद्ध है। [राजा परके उपलक्षण रूप होनेसे कौरम्य प्रादि अपत्यार्थक प्रत्यय जिनके अन्तमें हों इस प्रकारके शब्दों के द्वारा भी {राजाको सम्बोषित किया जा सकता है। विदू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy