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________________ ३६८ ] नाट्यदर्पणम का० २०१, सू० २६६ इत्येवं कीत्यते। भोक्तव्या भोत्तुमभिलषिता प्रथमपरिचयं पुरुषेण स्त्री 'भद्रा' इति, दयिता भायो पुनौवने 'प्रिया' इति कीर्त्यते । अथवा दयिता पिता-पुत्रयोयंदभिधानं तद्योगैस्तेन युज्यमानैः शब्दैः 'मारपुत्रि 'सोमशर्मजननि' इत्येवमादिभिः पुरुषेणाभाष्या। मुख्या कृताभिषेका दयिता पुनर्देवीति, अपिशब्दात् प्रियेति च राजभिर्बहुवचनादन्यश्च पुम्भिः । तथा विदूषकेण राझी राजपत्नी चेटी च भवति' इति वाच्या । तथा सर्वो आप नृपस्त्रियो राजपत्न्यः परिजनेन भट्टिनी स्वामिनी देवी इति शब्दैः शब्दान्ते । बेश्या पण्यस्त्री यौवनवती द्रष्टव्या, वृद्धाया नामान्तरविधानात् । परिजनेन . 'अज्जुका' इति । सा इति वेश्या वृद्धा पुनः 'अत्ता' इति । तुल्या समानकुल-शीलवयोऽवस्थादिका वनिता च समानया स्त्रिया हला'इति वाच्या इति । ।। [४५-४७] १६८-२००॥ अन्यदप्याह--- [सूत्र २६६]-हंजे त्वनुत्तमा-प्रेष्ये भगवदिति देवता । तपःस्था चार्य-देवषि-बहुविद्याः सयोषितः ॥ [४८] २०१॥ चित होनेकी सूचना देनेवाला है । यौवनकालको छोड़ अन्य समयमें केवल 'प्रायं' पदसे [पत्नी पतिको सम्बोधित करती है] । भोक्तव्य अर्थातू जिसके साथ पुरुष भोग करना चाहता है उस स्त्रीको प्रथन परिचयके समय पुरुष ‘भद्रे' कहकर सम्बोधित करता है। और दयिता अर्थातू अपनी भार्याको यौवनकालमें 'प्रिया' पदसे सम्बोधित करता है । अथवा दयिता अर्थात पत्नीको इसका पति प्रियाके अतिरिक्त उसके पिता और पुत्रके जो नाम हों उनके साथ मोड़कर माठरकी पुत्री, सोमशर्माकी माता प्रादि इस प्रकारके शब्दोंसे सम्बोधित करता है। मुख्या अर्थात् अभिषिक्ता पत्नीको राजा लोग देवी भी कहते हैं। अपि शब्दसे प्रिया भी राजामोंके द्वारा कहा जाता है। बनुवचनसे अन्य पुरुषोंके द्वारा भी [कृताभिषेका रानीको देवी कहा जाता है । तथा विदूषकके द्वारा राजपत्नी अर्थात रानी और चेटी दोनोंको 'भवतो' पसे सम्बोधित किया जाता है । और राजाओंकी सभी पत्नियो अर्थात रानियोंको परिजनवर्य भट्टिनी, स्वामिनी तथा देवी शब्दोंसे सम्बोधित करते हैं। वेश्या पदसे यौवनावस्थावाली बाजारू स्त्रीका ग्रहण करना चाहिए। क्योंकि वृद्धा वेश्याओंके लिए अत्ता इस दूसरे नाम का विधान किया गया है। [उस यौवनवतो वेश्याको परिजनवर्ग 'अज्ज का' इस नामसे कहते हैं। 'सा' अर्थात वही वेश्या वृद्धा हो तो 'प्रती' पदसे कही जाती है । तुल्या अर्थात् समान कुल, शील, प्रायु और दशा प्रादि वाली बराबरवाली स्त्रीको बरावरवाली दूसरी स्त्री 'हला' कहकर सम्बोधित करती है। [४५-४७] १९०-२०० ॥ . [इसी विषयमें पागे और भी कहते हैं [सत्र २९६]-उत्तम प्रकृतिसे रहित [प्रत एष अप्रेष्या प्र दूती प्रादिके रूपमें प्रियके पास न भेजने योग्य ] और प्रेष्या दोनोंको 'हज' शब्दसे 'साधित किया जाता है। [सरस्वती प्रादि ] येवंता पोर तपस्विनी स्त्रीको 'भगवती' शब्दसे कहा जाता है । पूज्य और बहुत पुरुषों और उनकी पत्नियों बोनोंको भी भगवत् शब्दसे सम्बोधित करना चाहिए। [४] २०१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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