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________________ ३८२ ] नाट्यदर्पणम [ का० १७७, सू० २६३-६५ पत्याविति सर्वेषु स्त्रो भेदेषु स्मरणीयम् । तेन कार्यतः कृतसंकेतं दूतीं वा प्रेयानागते पत्यौ 'विप्रलब्धा' इति सम्बन्धः || [२३] १७६ ॥ अथ खण्डिता [ सूत्र २६३ ] - खण्डिता खण्डयत्यन्यासक्त्या वासकमीयिता । अपरत्र्यभिष्वंगादुचितं वासकर्म कुर्वाणे प्रिये श्रसूयावती खण्डिता । विप्रलब्धायां नान्यत्र्यासक्तिरित्यस्या भेदः इति । अथ कलहान्तरिता [ सूत्र २६४ ] - ईर्ष्याकलह निष्क्रान्ते कलहान्तरितातिभाक् ॥ [२४] १७७ ॥ ईर्ष्याकलहेन तत्समीपान्निष्कान्ते तत्सविधमनागच्छति प्रिये पीडावती कलहान्तरितेति । अत्रेय या कलहपूर्वकं परस्परमसंयोगाभिलाषः । पूर्वत्र तु नायिका समागमार्थिनी कलहाभावात्, किन्तु अन्यासंगिनि प्रिये ईर्ष्यामात्रवतीति विशेष इति ।। [२४] १७७ ।। अथ विरहोत्कण्ठिता [ सूत्र २६५ ] – विलम्बयत्यदोषेऽपि विरहोत्कण्ठितोत्सुका । 'पत्य' यह पद सब स्त्रियों [अर्थात् सब नायिकाओं ] के साथ समझ लेना चाहिए । इसलिए कार्यवश मिलनेका संकेत करके और दूतोंको भेज करके भी कार्यवश पतिके न था सकनेपर विप्रलब्धा नायिका होती है यह संबन्ध है || [२३] १७६ ॥ अब प्रागे खण्डिता [नायिकाका लक्षण करते हैं ] - [ सूत्र २६३ ] - खण्डिता नायिका [पतिकी ] अन्य स्त्रीके प्रति प्रासक्तिके कारण ईर्ष्यायुक्त होकर [ अन्य स्त्रीके पास जाते समय उसके] वस्त्रों को खण्डित कर देती है । अन्य स्त्रीके प्रति प्रासक्तिके कारण सुन्दर वस्त्र श्रादिको धारण करते समय पतिके प्रति प्रसूयावती नायिका 'खण्डिता' कहलाती है। विप्रलब्धा नायिका ] में [ उसके पतिमें दूसरे स्त्रीके प्रति प्रासक्ति नहीं होती है यह [ खण्डिता तथा विप्रलब्धा का ] भेद, है । श्रम प्रागे कलहान्तरिता [नायिकाका लक्षण करते हैं ] - [ सूत्र २६४ ] – ईर्ष्या- कलहके कारण पतिके बाहर चले जानेपर दुःखी होने वाली 'कलहान्तरिता' नायिका कहलाती है । [२४] १७७ । for free कारण उस [स्त्री] के पाससे प्रियके निकल जाने और समीपमें न श्राने पर पीडा अनुभव करने वाली नायिका कलहान्तरिता' होता है । इसमें ईर्ष्या के कारण प्रापस में मिलने की इच्छा नहीं होती है । पहिली [ खण्डिता] नायिका तो कलह न होने के कारण समागम के लिए इच्छुक है, किन्तु अन्य के साथ सम्बन्ध रखने वाले प्रिय के विषय में केवल ईर्ष्या वाली है यह भेद है । [२४] १७७ ॥ अब आगे विरहोत्कण्ठिता [ नायिकाका लक्षरण करते हैं ] [ सूत्र २६५ ] - अपना कोई अपराध न होनेपर भी [ अन्य स्त्रीके प्रति प्रासक्ति के काररण पास श्रानेमें] विलम्ब करनेपर उत्सुका [नायिका ] विरहोत्कति कहलाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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