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________________ का० १७५, सू० २६०-६२ ] चतुर्थो विवेकः [ ३१ अथ प्रगल्भा[सूत्र २६०] -प्रगल्भेद्धवयो-मन्यु-कामा स्पर्शेऽप्यचेतना ॥ [२२] १७५ ॥ इद्धा दीप्ता वयो-मन्यु-कामा यस्याः । प्रियेण स्पृष्टापि प्रकृष्टकामत्वादेषा चैतन्य मुचति । एषापि मध्यावत् त्रिप्रकारा। तत्र धीरा कृतागसि प्रिये सावहित्थादरा कृतौदासीन्या च रते। अधीरा सन्तर्जन-ताडनपरा। घोराधीरा सोत्पासवक्रोक्तिपरेति ॥ [२२] १७५ ।। अथ प्रकारान्तरेण नायिकानां प्रसिद्धान भेदानाह[सत्र २६१]-कार्यतः प्रोषिते पत्यावभषा प्रोषितप्रिया । कार्य धनार्जन-राजप्रयोजनादि, तस्माद् देशान्तरं गते प्रिये, अभूषा केशसम्मार्जनादिभूषारहितेति । अथ विप्रलब्धा[सूत्र २६२]-विप्रलब्धा ससंकेते प्रेष्य दूतीमनागते ॥ [२३] १७६ ॥ होनेपर व्यंग्यपूर्ण ताने देने वाली होती है। अधीरा रोते हुए कठोर वचन कहने वाली होती है। और पीराधीरा रोते हुए व्यंग्य और कठोर ताने सुनाती है। .. अब भागे प्रगल्भा [नायिकाका लक्षण करते है]___ [सूत्र २६.] -पूर्ण रूपसे दोस मापु, काम तवा मान बाली और प्रियके] स्व. मात्रसे [मानन्दातिरेक से ] मछित हो जाने वाली [नाविका प्रगलमा नायिका कहलाती है। [२२] १७५ । । इस अर्यात होप्त प्रायु, मान तथा काम जिसके हैं वह [इडवयो-मन्यु-काम हुई । अत्यन्त उप काम-वासनासे युक्त होनेके कारण यह [प्रगल्भा नायिका प्रियतमके स्पर्शमात्रसे भी होश-हनास भूल जाती है। यह भी मध्याकी तरह [पीरा-मीरा और धीराधीरा भेबसे] तीन प्रकारको होती है। उनमेंसे धीरा प्रियके अपराधी होनेपर अपने प्राकारको छिपाते हुए [प्रियके प्रति] पादर प्रदर्शित करती है, किन्तु सुरत-व्यापारमें, उदासीन हो जाती है।. प्रषोरा [प्रियको] डोट-फटकार करती और मार तक लगाती है। धीराधीरा व्यंग्यपूर्ण ताने सुनाती है [२२] ॥ १७५॥ अब मागे नायिकाओंके अन्य प्रकारसे प्रसिद्ध मेवोंको कहते हैं [सूत्र २६१]-कार्यवश प्रियके बाहर चले जानेपर शरीरकी सजावट न करनेवाली प्रोषितपतिका नायिका कहलाती है। __ कार्य अर्थात् धनोपार्जन अथवा राजाका प्रयोजन प्रादि, उसके कारण प्रियके देशांतर को चले आनेपर भूषारहित प्रर्यात केशप्रसाधन प्रादि रूप भूषासे रहित [नायिका 'प्रोषित्पतिका' कहलाती है । प्राय मागे विपलब्धा [नायिकाका लक्षण करते हैं [सूत्र २६२]- [नायिकाके साथ मिलनेको संकेत करके और दूतीको भेज - भी [प्रियके] म मानेपर [नायिका] 'विप्रतम्धा-नायिका' कहलाती है । [२३] १७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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