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________________ ३६६ ] नाट्यदर्पणम् [ का० १५५, सू० २३१ [दिनकरकिरणोत्करः प्रियाकरः कोऽपि जीवलोकस्य । कमलमुकुलांकपालीकृतमधुकरकर्षणविदग्धः ॥ इति संस्कृतम] ॥" इयं स्वाश्रमरक्षणार्थ रामाकर्षणायागच्छतो विश्वामित्रस्य आदित्योदयवर्णनव्याजेन प्रवेशसूचिका।। (ख) यथा वा देवीचन्द्रगुप्ते पश्चमेऽङ्के- . "एसो सियकरवित्थरपणासियासेसवेरितिमिरोहो । नियविहवरेण चन्दो गयणं गहं लंधितं विसइ ।। [ एष सितकरविस्तरप्रणाशिताशेषवैरितिमिरौघः । निजविभववरेण चन्द्रो गंगनं ग्रह लंघयितु विशति ॥इति संस्कृतम् ॥" इयं स्वापायशंकिनः कृतकोन्मत्तस्य कुमारचन्द्रगुप्तस्य चन्द्रोदयवर्णनेन प्रवेशप्रतिपादिकेति। (२) अङ्कान्ते अङ्कमध्ये वा सनिमित्तं रङ्गात् पात्रस्य बहिनिःसरणं निष्क्रमः । तत्प्रयोजना। अनुशतिकादेराकृतिगणत्वाद् 'इकणि' उभयपदवृद्धौ नैष्क्रामिकी। यथा देवीचन्द्रगुप्ते पञ्चमांकान्ते "बहुविह-कज्जविसेसं अइगूढं निण्हवेइ मयणादो। 'निक्खलइ खुद्धचित्तउ रत्ताहुत्तं मणो रिउणो ॥ [बहुविधकार्यविशेषमतिगूढं निह्न ते मदनात् । निष्कलति दुब्धचित्तो रक्ताक्षिप्तमना रिपोः ।। __ इति संस्कृतम् ]" यह सूर्योदय-वर्णनके बहाने से अपने प्राधमकी रक्षाके लिए रामचन्द्रको लिवा बानेके उद्देश्यसे आनेवाले विश्वामित्रके प्रवेशको सूचिका [प्रवेशको ध्र वा] है। (ख) अथवा जैसे देवी चन्द्रगुप्तके पञ्चम प्रडमें प्रपती शुभ किरणोंके विस्तारद्वारा शत्रु रुप समस्त अन्धकार-समुदायको नाश कर देने वाला चन्द्रमा अपने प्रचुर [ज्योत्स्ना रूप] वैभवसे [अनिय] ग्रहोंका उल्लंघन करनेके लिए प्राकाशमें प्रविष्ट हो रहा है । यह चन्द्रोदयके वर्णनके बहानेसे अपने विनाशको शंका करनेवाले बनावटी रूपसे उन्मत्त बने हुए कुमार चन्द्रगुप्त के प्रवेशको सूचिका [प्रवेशिको ध्रवा] है। (२) नैष्क्रामिकी ध्रुवा (२) प्रङ्कके अन्तमें अथवा प्रकुके बोनमें कारणवश पात्रका रंगसे बाहर जाना निष्क्रमण कहलाता है। वह जिसका प्रयोजन हो, वह निक्रामिको ध्रना होती है। यह नष्कामिकी पर अनुशतिकादिगरणको प्राकृतिगरण मानकर [हेमचन्द्र व्याकरणके भनुलार] ईकण-प्रत्यय करनेपर तथा उभयपद-वृद्धि करके 'नष्कामिको' [पद सिद्ध होता है । से देवीचन्द्रगुप्तके पञ्चम प्रडके अन्तमें--- माना प्रकारके अत्यन्त गुप्त विशेष कार्योको कामके प्रावेगसे छिपाना चाहता है और सके रक्तपान के लिए उत्सुक अम्पत्सिवाला [कुमार चळगुप्त रणभूमिसे] बाहर जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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