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________________ २८२ ] नाट्यदर्पणम् [ का० १०६, सू० १५८ इत्यस्य वाक्यस्य छन्दसा प्रथितस्य चतुर्थपादेन 'स्वस्था भवन्ति मयि जीवति धार्तराष्ट्रा:' इत्यनेनार्थ गृहीत्वा भीमः । समयेन यथा छलितरामे "सादितप्रकट निर्मलचन्द्रहासः, प्राप्तः शरत्समय एष विशुद्धकान्तिः । उत्खाय गाढतमसं घनकालमुत्रं, रामो दशास्यमिव सम्भृतबन्धुजीवः ॥" अत्र समानविशेषणै रामशब्दकीर्तनाच्च रामप्रवेशसूचना | यानेन यथा श्रभिज्ञानशाकुन्तले छन्द रूपमें प्रथित इस वाक्यके चतुर्थ चररणके अर्थको लेकर 'स्वस्था भवन्तु मयि जीवति धार्तराष्ट्राः ' मेरे जीते रहते कोरवगरण कभी स्वस्थ बैठ सकते हैं ? यह कहते हुए भीमका प्रवेश होता है । " तवास्मि गीतरागेण हारिणा प्रसभं हृतः । एष राजेव दुष्यन्तः सारंगेरणा तिरंहसा ॥” समय [के वर्णन] से [मुख्यपात्रका प्रवेश] जैसे खलितराम में - इस श्लोक में शरत्कालके वर्णनके द्वारा रामचन्द्रका प्रवेश कराया गया है। श्लोक में कहे हुए विशेष शरत्काल और रामचन्द्र दोनों पक्षों में लगेगे । प्रथम चरण में 'चन्द्रहास' शब्द स्लिष्ट है । शरत्काल पक्षमें उसका अर्थ चन्द्रमाका हास यह होता हैं । और रामचन्द्र के पक्ष में . चन्द्रहासका अर्थ तलवार होता है । चतुर्थ चरण में 'संभृतबन्धुजीवः' में शरत्पक्ष में 'बन्धुजीव' पुष्पविशेषका नाम है, और रामचन्द्रपक्षमें उसका अर्थ बन्धु अर्थात् लक्ष्मण के जीवनको बचा लेनेवाला है | तृतीय चरण में 'घनकालमुग्रं' में शरत्पक्ष में घनकालका अर्थ वर्षाकाल है और रामचन्द्र पक्षमें उसका अर्थ रावरण है । श्लोकका अर्थ निम्न प्रकार है- ''[मेघोंके बाहर ] प्रकाशित निर्मल चन्द्रमा हासको प्राप्त करने वाला, [रामपक्षमें नंगी तलवारको हाथमें लिए हुए ] विशुद्ध कान्ति वाला, यह शरत्समय, गाढ़ अन्धकारयुक्त [ रामपक्षमें गहन ज्ञानान्धकारसे युक्त ] भयंकर वर्षकाल [ रामपक्ष में वर्षकाल के समान उग्र ] को विनष्ट करके बन्धुजीव पुष्पको धारण करता हुआ इस प्रकार था गया है जैसे निर्मल नङ्गी तलवारको लिए हुए विशुद्धकान्ति और बन्धु अर्थात् लक्ष्मण के जीवन की रक्षा कर लेने वाले रामचन्द्र भयंकर रावण को मारकर श्राए हों ।" इसमें [ शरत्समय तथा रामचन्द्र दोनों पक्षों में लगने वाले ] समान विशेषरणोंसे और राम शब्दका कथन करनेसे रामचन्द्रके प्रवेशकी सूचना मिलती है । [ श्राह्वान अर्थात्] नामसे [पात्रप्रवेशको सूचनाका उदाहरण] जैसे 'श्रभिज्ञानशाकु न्तल, में " [प्रामुखनें सूत्रधार नटीसे कहता है ] तुम्हारे मनोहर गीतरागसे यह मैं ऐसे हरणकर लिया गया हूं जैसे मनोहर और प्रत्यंत वेगवान् इस मृगके द्वारा यह राजा दुष्यन्त [हरणकर लिया गया है] ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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