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नाट्यदर्पणम
[ का० ६८, सू० १४६
राजा - ऊढेति देवीं प्रति मे दयालुता ।
ध्रुवदेवी -- इयं अज्जउत्त ! ईदिसी दयालुदा, जं प्रणवरद्धो जरो गुगदो एवं परिच्चईयादि ।
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[इयमार्यपुत्र ! ईदृशी दयालुता यदनपरद्धो जनोऽनुगत एवं परित्यज्यते ] । राजा - त्वयि स्थितं स्नेहनिबन्धनं मनः ॥ ध्रुवदेवी - दो य्येव मंदभागा परिच्चइयामि । [त एव मन्दभागा परित्यज्ये] । राजा - त्वय्युपारोपितप्रेम्णा त्वदर्थे यशसा सह । परित्यक्ता मया देवी जनोऽयं जन एव मे ॥
ध्रुवदेवी - हंजे ! इयं सा अय्यउत्तरस करुणदा । [हंजे ! इयं सा आर्यपुत्रस्य करुरणता ] ।
सूत्रधारी - देवि ! पति चंदमंडलाउ चुडुलीओ, किं एत्थ करीयदि । [देवि ! पतन्ति चन्द्रमण्डलादप्युलकाः, किमत्र क्रियते ] ? राजा - देवीवियोगदुःखार्तास्त्वमस्मान रमथिष्यसि । ध्रुवदेवी- वियोगदुक्खं पि दे अकरुणरस अस्थि य्येव ? [वियोगदुःखमपि तेऽकरुणस्यास्त्येव ] ?
राजा - त्वद्दुःखस्थापनेतुं सा शतांशेनापि न क्षमा ||" इति ॥
एतत स्त्रीवेषधारिचन्द्रगुप्तबोधनार्थमभिहितमपि विशेषणसाम्येन देव्या स्त्रीविषयं प्रतिपन्नमिति भिन्नार्थयोजनम् । एवं व्यर्थमपि श्लेषादिवशादुदाहार्यम् । ध्रुवदेवी - हे प्रार्यपुत्र ! यह [आापकी ] ऐसी दयालुता है कि अपने प्रति अनुरक्त और अपराधी सेविका [मुझ] को छोड़ रहे हैं ।
राजा- - [ चन्द्रगुप्तके प्रति ] किन्तु तुम्हारे प्रेमके कारण मेरा मन तुममें लगा हुआ है । ध्रुवदेवी - इसीलिए मुझ मन्दभागिनीका परित्याग कर रहे हैं ?
राजा -- तुम्हारे ऊपर प्रेम [ विश्वास ] करके तुम्हारे लिए [ श्रर्थात् तुम देवीको रक्षा शत्रुवध करके अवश्य कर सकोगे ऐसा मानकर, देवीपरित्यागका वचन देकर ] यशके साथसाथ मैंने देवीका परित्याग कर दिया और यह प्रजाजन तो मेरे प्रजाजन ही ठहरे ।
ध्रुवदेवी - हंजे ! यह आर्यपुत्रकी वह करुणता है [ जो मेरे प्रति रखते हैं ] । सूत्रधारी - देवि ! चन्द्रमण्डलसे भी यह उल्कापात हो रहा है अब इसमें क्या किया
जा सकता है ।
राजा - देवीके वियोग के दुःखमे दुःखी हमको अब [ शत्रुका वध करके देवीकी रक्षा द्वारा ] तुम हो सुखी बनाओगे ।
ुवदेवी - करुणा-रहित आपको वियोग-दुःख बना ही है ?
राजा - तुम्हारे दुःखको दूर कर सकने में वह तनिक भी समर्थ नहीं है ।"
स्त्री-वेषधारी चन्द्रगुप्तको बोधित करनेके लिए कहे हुए भी ये सब वचन विशेषणोंकी समानता के कारण ध्रुवदेवीने अन्य स्त्री-परक समझ लिए हैं इसलिए योजना [होनेसे त्रिगत नामक वीथ्यङ्गका उदाहररण] है । इसी प्रकार
यह भिन्नार्थमें उनकी श्लेषादिके द्वारा तीन
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