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नाट्यदर्पणम् पेसणयारो चेडउ ति।।
[परिहासयिष्यामि तावदेनम् । क इदानीमेषोऽस्माकं प्रेषणकारकश्चेटक इति । विदूषकः-अहं घडदासीणं सामिगो ।
___ [अहं घटदासीनां स्वामिकः] । चेटी-किं चेडउ त्ति भणिदे कुविदो तुमं । [कि चेटक'इति भणिते कुपितस्त्वम्] विदूषक :-को दाणि विसेसो घडदासीणं कुभदासीणं च ? क इदानीं विशेषो घटदासीनां कुंभदासीनां च] ? चेटी-मा कुप्प भट्टउत्तो त्ति भणिसं । [मा कुप्य, भर्तृ पुत्र इति भणिष्यामि । विदूषकः-भोदी ! तुर्व पि मा कुप्प अज्जा इति भरिणसं । [भवति ! त्वमपि मा कुप्य, आर्या इति भणिष्यामि । चेटी-अहो भट्टउत्तस्स गदी। [अहो भर्तृ पुत्रस्य गतिः] विदूषकः-अहो अदिरूआ अज्जया।
[अहो अतिरूपा आर्यका]" इति ।। [३२] १७ ॥ (५) अथ त्रिगतम्[सूत्र १.४६]-त्रिगतं शब्दसाम्येन भिन्नस्यार्थस्य योजनम् । __भिन्नस्य प्रस्तुतादन्यस्य । त्रिगतमनेकार्थगतं शब्दस्यानेकार्थत्वात् । तेन द्वयर्थ
चेटो-[स्वगत] इससे तनिक मजाक कर । [प्रकाश यह हमारा प्रेषण कराने वाला कौन दास है।
विदूषक--मैं घटदासियोंका स्वामी हूँ। [घटदासीका अर्थ जन्मसे दासी है] । चेटी-क्या चेट कहनेसे श्राप नाराज हो गए ? विदूषक -घटदासी और कुम्भवासीमें क्या भेद है ? चेटी-नाराज न हों अब 'भतपुत्र' कहूँगी। विदूषक-पाप भी नाराज न हों अब 'आर्या' कहा करूंगा। चेटी-पोहो भट्टपुत्रको चाल [कसी सुन्दर है] ! विदूषक-ग्रहो प्रार्याका रूप कसा सुन्दर है !
दोनोंमेंसे किसीके भी लाभके बिना यह मिथ्या संस्तवयुक्त हास्य वचन है। यह दूसरे मतसे प्रपञ्च नामक वीथ्यङ्गका उदाहरण है । [३२]६७॥
५ विगतनामक पञ्चम वीथ्यङ्गअब त्रिगत [का लक्षण प्रादि करते हैं]
[सूत्र १४६] - शब्दको समानताके कारण [अनेकार्थक कदको प्रस्तुत अर्थसे] भिन्न अर्थ निकलना 'त्रिगत' [कहलाता है।
शब्दोंको समानताके कारण [अन्वार्थक शब्दोंसे] अन्य अर्थको योजना त्रिगत' किहलाता है । जैसे 'देवीचन्द्रगुप्त' के द्वितीय अंकमें प्रजामोंके प्राश्वासनके लिए राजा राम
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