________________
का०६७, सू० १४४ ] द्वितीयो विवेकः
[ २४९ अमुष्य ननु रोदसीविजयनिष्णदोष्णः समि
न्मृगव्यरसिकस्तदा क इव नाम वैतण्डिकः ! ॥ . मयः-[अपवार्य मन्दोदरी। प्रति] वत्से । यथावस्थितमभिधाने लापतौ किमतः परं विज्ञापयामि । इति ।"
केचित्तु 'अन्योऽन्यवाक्याधिक्योक्तिः स्पर्धयाऽधिवलं भवेत्' इति पठन्ति । एतदप्योभेदादनेन संगृहीतमिति ॥ [३१] ६६ ॥
(३) अथ गण्ड:[सूत्र १४४]-गण्डोऽकस्माद् यदन्यार्थ प्रस्तुतानुगत वचः ।
अन्याभिप्रायेणाकस्मात् प्रत्युक्तं प्रतिवचनतयानुच्चारितमपि प्रतिवचनरूपतया प्रक्रान्तेन यत् सम्बद्ध वचनं, तद् दुष्टार्थगर्भवाद् दुष्टशोणितगर्भगण्ड इव 'गण्डः' । यथोत्तरचरिते"रामः--[सीतामवलोक्य]
इयं गेहे लक्ष्मीरियममृतवतिर्नयनयोरसावस्याः स्पर्शो वपुषि बहुलश्चन्दनरसः । अयं बाहुः कण्ठे शिशिरमसृणो मौक्तिकसरः
किमस्या न प्रेयो यदि परमसह्यस्तु विरहः ॥ बलात् रमण करने लगे तो द्याता-पृथिवीको विजय करनेमें समर्थ भुजदण्ड वाले, उसके साथ युख-मृगयाका रसिक कौन बाधक बन सकता है ?
मय----[और कोई न सुन सके इस प्रकार---अपवार्य---मन्दोदरीके प्रति वत्से ! [यह बात तो] लङ्कापति ठीक ही कह रहे हैं तब मैं और क्या कहूँ ?"
यहां परस्पर संवादमें रावणने युक्तियों के बलसे प्रबलताके साथ अपने पक्षको स्थापना की है। प्रतः यह 'अधिबल' नामक द्वितीय वोध्यङ्गका उदाहरण है।
कोई लोग स्पर्धाके कारण एक-दूसरेसे बढ़कर वाक्योंके कयनको 'प्रधिबल' कहते हैं। अर्थमें भेद न होनेसे [अर्थात पर्यतः इसी पूर्व लक्षण वाले अधिबलके समान होनेसे] उसका भी अन्तर्भाव इसी [पूर्वोक्त लक्षरणमें] हो जाता है ।। [३१] ६६ ॥
(३) गण्ड नामक तृतीय वीथ्यङ्ग ३-अब 'गण्ड' [नामक तृतीय वीथ्यङ्गका लक्षणादि करते हैं]--
[सूत्र १४४] अन्यार्षक होनेपर भी प्रस्तुतसे सम्बद्ध हो जाने वाला जो बचन अकस्मात् कहा जाय वह 'गण्ड' कहलाता है।
अन्य अभिप्रायसे अकस्मात् बोला गया जो बचन प्रत्युत्तरके रूपमें उच्चारित न होनेपर भी, प्रकृतके साथ प्रत्युत्तर रूपमें संगत हो जाता है वह, अनिष्ट अर्थको अपने भीतर लिए हुए होनेसे गन्दे खूनसे भरे हुए फोड़ेके समान 'गण्ड' कहलाता है। जैसे उत्तररामचरितमें
"राम [सौताको देखकर]
यह [सीता] घर में लक्ष्मी के समान है, यह नेत्रों के लिए अमृतको शलाकाके समान [सुखद है । इसका यह [शीतल] स्पर्श शरीरमें प्रचुर चन्दन रसके तेपके समान है। इसका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org