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________________ नाट्यदर्पणम् [ का० ६४-६५, सू० १४१-१४२ अथास्या अङ्ग सान्यभिधीयन्ते— [ सूत्र १४१ ] - व्याहारोऽधिबलं गण्डः प्रपञ्चास्त्रिगतं छलम् । प्रसत्प्रलापो वाक्ली नालिका मृदवं मतम् । [२६] ४॥ उद्घात्यकावलगिते प्रथावस्पन्दितं स्मृतम् २४२ ] भारतीवृत्तिवर्तीनि वीथ्यङ्गानि त्रयोदश ।। [३०] ६५ ॥ एतानि त्रयोदश वीथ्यङ्गानि विविध वक्रोक्त्यादिरूपत्वाद् भारत्यां वृत्तौ वर्तनशीलानि । अत एव वीथ्यप्येषामङ्गानां श्रङ्गीभूता भारतीवृत्त्येकदेशः ॥ [ २६-३०] ६४-६५ ।। (१) तत्र प्रथमं व्याहारः [ सूत्र १४२ ] - प्रन्यार्था भाविदृष्टिर्वा व्याहारो हास्यलेशगीः । 1: अन्योऽर्थः प्रयोजनं यस्याः, भाविनी वा भविष्यन्ती दृष्टिर्दर्शितविषयोऽर्थो यस्याः सा । हास्ये लेशप्रधाना गीर्वाणी । विविधोऽर्थ आह्रियतेऽनयेति व्याहारः । तान्यार्थी यथा मालविकाग्निमित्रे लास्यप्रयोगावसाने मालविका निर्गन्तुमिच्छति । C कराया जाता है ॥ [ २८ ] ६३ ॥ अब इस [ वीथी ] [ सूत्र १४१ ] - १. व्याहार, २. अधिबल, ३. गण्ड, ४. प्रपञ्च, ५. त्रिगत, ६. छल, ७. प्रसत्प्रलाप, ८. दाक्केलि है. नालिका, १०. मृदव, ११. उद्धात्यक, १२. श्रवलगित, १३. अवस्पन्दित भारती-वृत्ति में होने वाले ये तेरह वीथीके प्रङ्ग हैं । [ २६-३० ] ६४-६५ ।। ये तेरहों अङ्ग विविध प्रकारकी वक्रोक्ति रूप होनेसे । [ वाग्व्यापार रूप] भारती वृत्तिमें रहने वाले होते हैं । इसीलिए इन वीथ्यङ्गों की प्रङ्गीभूत 'वीथी' भी भारती-वृत्तिका ही एक भाग है । । [ २६-३०] ६४-६५ ।। Jain Education International के [ तेरह ] ग्रङ्ग कहते हैं (१) व्याहार नामक प्रथम वीथ्यङ्ग उन [तेरह वीथ्यङ्गों] मेंसे पहला 'व्याहार' है [ उसका लक्षण निम्न प्रकार करते हैं ] [ सत्र १४२ ] -- [ कथित प्रयोजनसे ] अन्य प्रयोजन वाली प्रथवा श्रागे होने वाले [ किसी विशेष ] प्रयोजनसे हास्यके लेशसे युक्त कहीं गई वाणी 'व्याहार' | कहलाती ] है । [सामान्य कथित प्रयोजनसे ] अन्य अर्थ, अर्थात् प्रयोजन जिसका हो अथवा भाविनी अर्थात् प्रागे होने वाली दृष्टि अर्थात् दिखलाए जाने वाला अर्थ जिसका विषय हो, इस प्रकार की, हास्यके सम्पर्कसे युक्त वारणी, [ व्याहार कहलाती ] है । [ व्याहार शब्दका निर्वाचन दिखलाते हैं ] - जिस [वारणी] के द्वारा विविध प्रथका प्राहररण किया जाता है वह व्याहार [कहलाती ] है । उनमें से प्रार्थविषयक व्याहारका उदाहरण जैसे मालविकाग्निमित्रमें नृत्य प्रयोग के समाप्त होनेपर मालविका बाहर जाना चाहती है। [ उस समय विदूषक उसको रोकता हुना कहता है कि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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