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________________ का० ६६, सू० १४२ ] द्वितीयो विवेकः [ २४३ "विदूषकः--मोदि ! चिट्ठ दाव, विसुमरिदं खु वो किंचि तं ताव पुच्छिसं । [भवति ! तिष्ठ तावद् विस्मृतं खलु वः किञ्चित् तत् तावत् प्रक्ष्यामि] । गणदासः-वत्से ! तिष्ठ तावदुपेशविशुद्धौ गमिष्यसि । [मालविका स्थिता] । धारणी-गोदमवयणं पि अज्जो हियए पमाणीकरेदि । [गोतमवचनमपि आर्यो ह्रदये प्रमाणीकरोति] । गणदासः--देवि मा मैवम् । देवप्रत्ययात् सम्भाव्यते सूक्ष्मदर्शी गोतमः । पश्यमन्दोऽप्यमन्दतां याति संसर्गेण विपश्चितः । पङ्कच्छिदः फलस्येव निकर्षणाविलं पयः । [विदूषकं विलोक्य] किं विवक्षितमार्यस्य ? विदूषकः-पढमं दाव पेक्खगे पुच्छ। पच्छा जो मए कम्मभेदो लक्खिदो तं भणिस्सं । [प्रथमं तावत् प्रेक्षकान पृच्छ, पश्चाद् यो मया क्रमभेदो लक्षितस्तं भणिष्यामि। गणदासः-भगवति ! गुणो वा दोषो वा यथादृष्टमभिधीयताम् । परिब्राजिका-यथा मे दर्शनं तथा सर्वमनवद्यम् । गणदासः-देवः कथं मन्यते ? विदूषक---आप जरा ठहरिए । आप कुछ भूल गई हैं उसके विषय में पूछता हूँ। गरणदास--[मालविकाका नृत्य-शिक्षक गुरु है, वह कहता है] वत्से ! ठहर जाग्रो । [विदूषक जो कुछ पूछना चाहता है उसका उत्तर देकर] उपदेशकी शुद्धता हो जानेपर जाना। [मालविका रुक जाती है। धारणी-[राजाकी प्रधान रानी है वह मालविकाका अधिक देर राजाके सामने रहना पसन्द नहीं करती है इसलिए कहती है कि क्या इस [गोतम] मूर्ख [विदूषक] के वचनको भी प्रार्य अपने हृदयमें प्रमाण मानेंगे। [अर्थात् इस मूर्खकी बात ध्यान देने योग्य नहीं है। गणदास—देवि ! ऐसा मत कहिए। महाराजके सम्बन्धसे [गोतम विदूषकमें भी नृत्यको बारीकियोंको समझ सकनेकी क्षमता हो सकती है। इसलिए] गोतम सूक्ष्मदर्शी हो सकता है। देखिए विद्वान्के संसर्गसे मूर्ख भी विद्वत्ताको प्राप्त कर सकता है। [जलको] मलिनताको दूर करने वाले [कतकवृक्षके फलके संसर्ग से जैसे मलिन जल भी शुद्ध हो जाता है । [विदूषकको देखकर आप क्या कहना चाहते हैं ? विदूषक-पहिले [जिसको इस नृत्यको परीक्षामें निर्णायक नियत किया गया है उन] प्रेक्षक-महोदयसे पूछो, उसके बाद मैंने जो कमी देखी है उसको बतलाऊँगा। ___ गणवास-[परिवाजिकासे] भगवति ! [इस मालविका नृत्यमें ] गुण या दोष जो प्रापने देखा हो उसे कहिए। परिवाजिका--जहाँ तक मैं समझ हूँ सब-कुछ ठीक है । गरणदास-राजासे] महाराजको क्या सम्मति है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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