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________________ १८६ ] नाट्यदर्पणम् [ का०६४, सू० १११ कान्ते राज्ञः कुरूणामतिसरसमिदं मगदाचूर्णितोरोः, __ अङ्गाऽमृङ् निषिक्तं तव परिभवजस्यानलस्यास्तु शान्त्यै ॥" अत्र भीमेन द्रौपद्याः क्रोधोपशमः । तथा रत्नावल्याम "देव श्रूयताम । इयं सिंहलेश्वरदुहिता सिद्धेनादिष्टा। योऽस्याः पाणि ग्रहीव्यति स सार्वभौमो राजा भविष्यति ।" इत्यादेरारभ्य परिझातायाः स्वभगिन्याः सम्प्रति करणीये देवी प्रमाणम् ।" इति यावत् । अनेन स्वाजन्यावगमात् वासवदत्तायाः सागरिकां प्रति ईर्ष्या-कोपरय शमनमिति । (4) अथानन्दः [सूत्र १११]-आनन्दो वाञ्छितागमः । प्रकारशतैर्वाग्छितम्यार्थस्य सामस्त्येन आगमः प्राप्तिः, आनन्दहेतुत्वात् प्रानन्दः। यथा रत्नावश्याम"वासवदत्ता-[राजानमुपेत्य] अज्जउत्त पडिच्छ एदं । [आर्यपुत्र ! प्रतीच्छताम् । इति संस्कृतम् ] । राजा-[हस्तौ प्रसार्य] को देव्याः प्रसादं न बहु मन्यते ? विदूषकः-ही ही भो जयदु भवं । णं पुहवी इदाणिं हत्थे भूद व्येव पियबिलकुल ताले रक्तको मैंने अपने प्रत्येक अंगमें मला हुआ है उससे तुम्हारे अपमानसे अन्य ताप को शांति होगी।" इसमें भीम के द्वारा द्रौपदीके कोषका शमन है [प्रतः चुति का उदाहरण है] । पौर रत्नावलीमें "हे देव ! सुनिए। इस सिंहलेश्वरकी पुत्रीके विषयमें सिद्धने कहा था कि जो कोई इसका पाणिग्रहण करेगा वह सार्वभौम राजा बनेगा।" यहाँसे लेकर "अब पहिचानी हुई अपनी बहिनके विषयमें क्या करना चाहिए इस विषय में पाप ही प्रमाण है।" यहाँ तक। इस प्रसंग] से [रत्नावलीको] अपनी बहिन जानकर सागरिकाके प्रति वासवदताको ईर्ष्या तथा कोषका शमन पाया जाता है [इसलिए यह चुतिका उदाहरण है] । (6) अब प्रानन्द [नामक निर्वहणसंषिके प्रष्ट अंगका लक्षण प्रादि करते हैं][सूत्र १११]-वाञ्छित अर्थको प्राप्ति 'मानन्द' [नामक अंग कहलाता है। संकड़ों प्रकारोंसे वाञ्छित अर्थात् चाहे हुए प्रर्थका सम्पूर्ण रूपसे मागम मर्यात प्रालि मानन्दका कारण होनेसे 'मानन्द' [कहलाता है । जैसे रत्नावलीमें "वासवरता-[राजाके पास जाकर आर्यपुत्र! इस [रत्नावली] को ग्रहण कीजिए। राबा-हाथ फैलाकर देवीके प्रसादका कौन पावर नहीं करता है ? [इसलिए मैं देवीका प्रसाद समझकर रलावलीको स्वीकार करता हूँ। विदूषक -ही-ही परे पापको विजय हो । ज्योतिषियोंके कपनके अनुसार रत्नावती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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