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________________ १८० ] नाट्यदर्पणम् [ का० ६३, सू० १०६ "लव:--अये कमियमम्बा राजद्वारमागता । [उत्थाय सहसोपसृत्याञ्जलि बद्धवा] अम्ब ! अभिवादये। [निरूप्य] कथमियं काञ्चनमयी। [अपमृत्योपविशति, सर्वे परस्परमवलोकयन्ति] । रामः--[दृष्ट वा] वत्स ! किमियं तव माता। लवः-राजन् ! ज्ञायते सैवेयमस्मज्जननी, किन्त्वेषा देवी भूषणोज्ज्वला । [रामः सवाष्पं हस्ते गृहीत्वा समीपे उपवेशयति] । लक्ष्मण:--[सास्त्रम् ] आयुष्मन् ! किन्नामधेया सा देवानां प्रियस्य जननी। लवः-तां खलु मातामहो अस्माकमभिधत्ते सीतेति । . लक्ष्मणः--[सवाष्पं रामस्य पादयोर्निपत्य] आर्य ! दिष्ट्या वर्धसे, सपुत्रा जीवत्यार्या ।" अत्र नष्टय सीताजीवनकार्यस्य युक्त्या मीमांसेति । (३) अथ प्रथनम् [सूत्र १०६]-ग्रथनं कार्यदर्शनम् । कायें मुख्यफलम् । अथ्यते सम्बध्यते व्यापारेण मुख्यफलमनेनेति प्रथनम् । यथा वेणीसंहारे "भीमसेनः-पाञ्चालि ! न खलु मयि जीवति संहतेच्या दुःशासनविलुलिता वेणिरात्मपाणिना । तिष्ठतु तिष्ठतु स्वयमेवाहं संहगमि ।" इति । "लव-अरे, ये माताजी राजाके द्वारपर कैसे प्राई ? [उठकर और सहसा पास जाकर और हाथ जोड़कर-हे माताजी ! नमस्ते ! [देखकर] अरे यह तो सोनेकी है। [हटकर बैठ जाता है। सब लोग एक-दूसरेको देखने लगते हैं। राम---[देखकर] हे वत्स ! क्या ये तुम्हारी माताजी हैं। लव-हे राजन् ! ऐसा मालूम होता है कि ये हमारी वे माता ही हैं । किन्तु यह देवी तो भूषण धारण किए हुए है। [रामचंद्र रोते हुए हाथ पकड़कर लवको पास बिठालते हैं। लक्ष्मण-[रोते हुए] प्रायुष्मन् ! तुम्हारी माताजीका क्या नाम है ? लव-उनको हमारे नानाजी सीता कहते हैं। लक्ष्मण-[ रोते हुए रामचंद्रके पैरोंपर गिरकर ] पार्य, भाग्यसे प्रापकी वृद्धि है। मार्या [सीता] पुत्र सहित जीवित हैं।" - यहाँ सीताके जीवनरूप विनष्ट हुए कार्यकी युक्ति द्वारा मीमांसा की है। [अतः यह निरोध नामक अङ्गका उदाहरण है] । (३) अब 'प्रथन' नामक निर्वहण संधिके तृतीय अङ्गका लक्षण आदि करते हैं]सूत्र १०६]-कार्यका दिखलाई देना 'प्रथन' कहलाता है। कार्य अर्थात् मुख्य फल । जिस व्यापारके द्वारा मुख्य फल प्रथित.अर्थात् सम्बद्ध होता है वह 'प्रथन' [अङ्ग] है । जैसे वेणीसंहारमें ___ "भीमसेन हे पाञ्चालि ! मेरे जीवित रहते दुःशासनके द्वारा खींचे गए केशोंको अपने हाथसे मत बांधना । ठहरो-ठहरो, मैं स्वयं अभी बाँधता हूँ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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