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________________ १७२ ] नाट्यदर्पणम् [ का० ६०, सू० १०० राजा-दुरात्मन् ! भरतकुलापसद ! पाण्डवपशो! नाहं भवानिव विकत्थनाप्रगल्भः । किन्तु द्रक्ष्यन्ति न चिरात् सुप्त बान्धवास्त्वां रणाङ्गणे । मदुगदाभिन्नवक्षोऽस्थिवेणीकाभीमभूषणम् ॥" इत्यादीति । असंरब्धस्यापि दृश्यते । यथा वेणीसंहारे युधिष्ठिरः "नूनं तेनाद्य वीरेण प्रतिज्ञाभङ्गभीरुणा। बध्यतां केशपाशस्ते स चास्याकर्षणक्षमः॥” इति ।। सम्फेटे क्रोधेन भाषणमात्रं संरम्भे तु बलकीर्तनमित्यनयोर्भेद इति ॥५६ (१०) अथ शक्तिः _[स्वत्र १००]-क्रुद्धप्रसादनं शक्तिः क्रुद्धस्य प्रसादनं अनुकूलनं बुद्धि-विभवादिशक्तिकार्यत्वेन सा शक्तिः । यदि वा क्रुद्धस्य द्विषतः प्रकर्षण सादनं विनाशनं शक्तिः । यथा रत्नंवल्याम् राजा-- राजा-अरे नीच ! भरतकुलकलंक! पाण्डवपशो ! मैं तेरे समान प्रात्मश्लाघामें निपुण तो नहीं हूँ किन्तु तेरे बान्धव लोग शीघ्र ही, मेरी गदासे लूटी हुई छातीकी अस्थियोंको मालासे भयंकर भूषणोंसे युक्त तुझको युद्धभूमिमें सोता हुआ देखेंगे। इत्यादिमें [संरब्धोंके शक्ति-कीर्तनके कारण 'संरम्भ' का उदाहरण है। क्रोधावेशके बिना भी [शक्ति-ख्यापन] देखा जाता है। जैसे वेणीसंहारमें-- “युधिष्ठिर–प्रतिज्ञाके अङ्ग भंग होनेके भयसे वह [भीमसेन] आज तुम्हारे केशपाश को और जिसने उसका प्राकषंण किया था उन दोनोंको [क्रमशः] बाँधे तथा मारेगा। इसमें 'बध्यता' पद बधार्थक तथा बन्धनार्थक दोनों धातुनोंसे समान रूपमें ही बनता है। प्रतः उसके दोनों अर्थ लगते हैं। यह वचन युधिष्ठिरने क्रोधावेशके बिना ही कहा है। प्रतः दूसरे प्रकारके 'संरम्भ मङ्गका उदाहरण है। प्रागे इसी अामर्श सन्धिके सम्फेट नामक तृतीय अङ्गके साथ इस 'संरम्भ' नामक नवम अङ्गका भेद दिखलाते हैं। 'सम्फेट' [अङ्ग] में केवल क्रोषसे भाषण मात्र होता है और 'संरम्भ में शक्तिका कीर्तन होता है यह इन दोनोंका भेद है ॥५६॥ (१०) अब 'शक्ति' [नामक अमर्श सन्धिके दशम अङ्गका लक्षण प्रादि करते हैं][सूत्र १००] क्रुद्धको प्रसन्न करना 'शक्ति' [कहलाता है। कुद्धको प्रसन्न करना अर्थात् अनुकूल करना, बुद्धि या वैभव प्रावि शक्तिका कार्य होनेसे वह [क्रुद्ध प्रसादन] 'शक्ति' [कहलाता है। अथवा क्रुद्ध हुए शत्रुका [प्रसादन अर्थात प्रकरण सादन] अत्यन्त विनाश 'शक्ति' [कहलाता है। [पहले प्रकारका उदाहरण] जैसे रत्नावलीमें-राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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