SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का०५६, सू० ६६ ] प्रथमो विवेकः [ १७१ सकलरिपुजयाशा यत्र बद्धा सुतैस्ते, तृणमिव परिभूतो यस्य गर्वण लोकः । रणशिरसि निहन्ता तस्य राधासुतस्य, प्रणमति चरणौ वां मध्यमः पाण्डवोऽयम् ॥ आप-च तात! चूर्णिताशेषकौरव्यः क्षीबो दुःशासनासृजा । भक्तवा सुयोधनस्योरू भीमोऽयं शिरसार्चति ॥” इति । पत्र स्वगुणाविष्करणात् विचलनमिति । (E) अथ संरम्भः [सूत्र 86]-संरम्भः शक्तिकीर्तनम् ॥५६॥ संरब्धानामुत्तर-प्रत्युत्तरेण श्रात्मशक्तिभाषणं संरम्भः । यथा वेणीसंहारे दुर्योधनं प्रति क्रमाद्"भीमः-अन्यच्च मूढ ! शोक स्त्रीवन्नयनसलिलैर्यत् परित्याजितोऽसि, भ्रातुर्वक्षःस्थलविघटने यश्च साक्षीकृतोऽसि । आसीदेतत् तव कुनृपतेः कारणं जीवितस्य; क्रुद्धे युष्मत्कुल कमलिनी-कुञ्जरे भीमसेने ॥ __ तुम्हारे पुत्रोंने जिसके ऊपर सारे शत्रुओंको विजय करनेकी प्राशा लगाई हुई थी, और जिसके अभिमानके कारण सारे संसारको तुणके समान तिरस्कृत किया था, उस राषासुत [कर्ण] को युद्धभूमिमें मारनेवाला यह मध्यम पाण्डव [अर्जुन] आपके दोनोंके चरणों में प्रणाम करता है। हे तात ! और भी [सुनिए] समस्त कौरवोंका नाश कर डालनेवाला, दुःशासनके रक्तसे मत्त हुन्मा एवं दुर्योधनको अंधात्रोंको तोड़कर यह भीम [भी] प्रापको शिरसे नमस्कार करता है।" इसमें अपने गुणोंके प्रकट करनेके कारण यह 'विचलन' [अङ्गका उदाहरण है। (९)-प्रद संरम्भ [नामक प्रामर्शसन्धिके नवम अङ्गके लक्षण प्रादि कहते हैं][सूत्र ९८]-[अपनी] शक्तिका कथन करना 'संरम्भ' [नामक अङ्ग कहलाता है।५६। प्रावेश भरे दो जनोंका उत्तर-प्रत्युत्तर द्वारा अपनी-अपनी शक्तिका कथन करना 'संरम्भ' [कहलाता है । जैसे 'वेणीसंहार में दुर्योधनके प्रति भीम क्रमसे कहते हैं]-- "मूर्ख ! और भी [सुन]-- स्त्रियोंके समान [अपने सम्बन्धियोंका नाश देखकर तुझे जो रुलाया गया, और भाई [दुःशासन] की छातीको फाड़ने और उसका रक्तपान करने में जो तुझको साक्षी बनाया गया। तेरे कुल रूप कमलिनीके लिए हाथोके समान [विनाशक भीमसेनके क्रुद्ध होनेपर भी तेरे अब तक सीवित रहनेका यही कारण था. [अन्यथा तुझे न जाने कबका मार दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy