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________________ का० ५८, सू० ६३ ] प्रथमो विवेकः [ १६३ (३) अथ सम्फेट:-- [सूत्र ६३]-सम्फेटः क्रोधजं वचः। परस्परं क्रोधजन्मोत्तर-प्रत्युत्तररूपः संलापः सम्फेटः । यथा वेणीसंहारे "भीमः-भो कौरवराज ! कृतं बन्धुनाशदर्शनमन्युना । मैवं विषादं कृथाः पर्याप्ताः पाण्डवाः समराय अहमसहाय इति । पञ्चानां मन्यसे ऽस्माकं यं सुयोधं सुयोधन ! दंशितस्यात्तशस्त्रस्य तेन तेऽस्तु रणोत्सवः ॥ इत्थं श्रुत्वा असूयात्मिकां निक्षिप्य कुमारे दृष्टिं उक्तवान् धार्तराष्ट्र: कर्ण-दुःशासनबधात् तुल्यावेव युवां मम । अप्रियोऽपि प्रियो योद्ध त्वमेव प्रियसाहसः॥" इत्येतद् भीम-दुर्योधनयोरन्योन्यं रोषभाषणम् । यथा वा यादवाभ्युदये सप्तमेऽङ्के"बलभद्रः-[स्वगतम] कथमुपहसति नारदः । भवतु [प्रकाशम् ] वृद्धोक्षस्य नृपस्य तस्य नियतं को नाम मल्लो युधि, व्याधत्त किल यम्य विक्रमचण: पक्षं मुनिनारदः । (३) अब सम्फेट [नामक विमर्शसंधिके तृतीय अङ्गका लक्षण प्रादि कहते हैं] - [सूत्र ६२]-क्रोषपूर्ण भाषण 'सम्फेट' [कहलाता है। जैसे वेणीसंहारमें "भीम-हे कौरवराज [दुर्योधन] ! बन्धुनोंके नाशको देखकर दुःखी होनेकी प्रावश्यकता नहीं है । तुम यह दुःख मत करो कि पाण्डव लोग युद्ध करनेके लिए [पर्याप्त] बहुत से हैं और मैं अकेला हूँ। हम पांचोंमेंसे जिसके साथ युद्ध करना तुम सहज समझो कवचादि धारण करके और शस्त्र लेकर उसीके साथ तुम युद्धका प्रानन्द ले सकते हो। ऐसा सुनकर [भीम तथा अर्जुन] दोनों कुमारोंको मोर प्रसूयापूर्वक देखकर दुर्योधन कहता है कि [अर्जुनने कर्णका और तुमने दुःशासनका वध किया है। ये दोनों ही मेरे प्रिय थे इसलिए] कर्ण और दुःशासनका वष करनेवाले होनेके कारण तुम दोनों ही मेरे लिए एकजैसे [अप्रिय हो, फिर भी, अप्रिय होनेपर भी साहसो तुम ही युद्धके लिए मुझे प्रिय मालूम पड़ते हो।" ____ यह भीम तथा दुर्योधनका एक-दूसरेके प्रति रोष-भाषण है [मतः यह 'सम्फेट'नामक मङ्गका उदाहरण है। अथवा जैसे यादवाभ्युदय में सक्षम प्रकृमेंबलभद्र-[अपने मन में अच्छा नारद हमारी हंसी उड़ा रहे हैं। [प्रकाशम्] बूढ़े सांडके समान उस राजाके साथ पुट करनेवाला प्रतिमल्ल कौन हो सकता है जिसका पक्ष स्वयं नास्व मुनि ले रहे हैं यह व्यङ्गयोक्ति है। फिर भी कंसका विनान करने में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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