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________________ १६४ ] नाट्यदर्पणम् [ का०५८, सू०६४ कंसध्वंसकृतश्रमौ मधुरिपोर्याहू तथाप्याहवे, क्षामस्थामलवानुरूपमचिरादाधास्यतः किश्चन ।। नारदः [सरोषमिव]-- कंसांसभित्तिमदमर्दनकेलिचश्चोश्चक्रस्फुलिङ्गगणसंगपिशंगबाहुः । सम्पूरयिष्यति हरेरपि गाढरूढ संग्रामदोहदमसौ मगधाधिनाथः ।। इति । (४) अथापवादः [सूत्र ६४]-अपवादः परीवादः। परीवादः स्वपरदोषोद्घट्टनम् । यथा पुष्पदृति के पश्चमेऽङ्के"ब्राह्मणः-माजिता हि ब्राह्मणस्य मुखमधुरः कालपाशः । तथाहि हतः पुत्रो हतो भ्राता हतो मार्जितया पिता। तथाप्येतां स्वगोत्रघ्नीं निन्दामि च पिबामि च ।।" इति । परिश्रम कर चुकनेवाले मधुरिपु कृष्णके दोनों बाहु दुर्बल या प्रबल जो कुछ हैं उसके अनुरूप युटमें कुछ-न-कुछ शीघ्र ही दिखलायेंगे। नारद [क्रोषपूर्वक] कंसके स्कंधोंकी भित्तिका मर्दन करनेमें चतुर, चक्रकी चिनगारियोंके संसर्गसे [समुदायसे] पोतबाह [अर्थात् कृष्णका सुदर्शन चक्र भी जिसके हाथों में केवल चिनगारियां उत्पन्न कर सकता है अधिक उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता इस प्रकारका] यह मगधराज, कृष्णको भी प्रबल युद्ध-कामनाको पूरा कर देगा। यह नारद तथा बलभद्रके रोष-वाक्य एक-दूसरेके प्रति कहे गये हैं अतएव यह भी 'सम्फेट'का दूसरा उदाहरण है। (४) अब अपवाद [विमर्शसन्धिके चतुर्थ अङ्गका निरूपण करते हैं]-- [सूत्र ९३]--[किसीको निन्दा करना 'अपवाद' [कहलाता है। निन्दा करना अर्थात् अपने या दूसरेके दोषका प्रकट करना। जैसे पुष्पदूतिकके पञ्चम अङ्कमें "ब्राह्मण-माजिता [अर्थात् शकर मिला हुआ वही] ब्राह्मणके लिए मुखमें मधुर लगने वाला कालपाश है । इसलिए-- इस माजिता [शकर मिले हुए वही] ने यद्यपि अपने पुत्र [धृत] को मार डाला [अर्थात् वही से घी उत्पन्न होता है इसलिए घी दहीका पुत्र है। किन्तु जब दहीको शकर मिलाकर खानेके काममें ले लिया जाय तो उससे घी कैसे निकल सकता है इसलिए 'माजिता शकर मिले वहोने अपने पुत्रको नष्ट कर दिया यह कहा है] भ्राता [तक मठे] को भी मार दिया है और पिता [दूध] को भी नष्ट कर दिया है फिर भी अपने वंशका नाश करने वाली इस 'माजिता' की निन्दा करता हुआ भी मैं उसको पी रहा हूँ। इसमें माजिता शकर मिले दहीको निन्दा होनेसे यह 'अपवाद' नामक अङ्गका उदाहरण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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