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________________ का० ५४, सू० ८३] प्रथम विवेकः [ १५३ " [नेपथ्ये सचीत्कारम् ] गिरहेध ले गिरहेध वेढेध ले वेढेध । [सर्वे सभयमवलोकयन्ति ] | [गृह्णीत रे गृह्णीत वेष्टध्वं रे वेब्रुध्वम् । इति संस्कृतम् ] । स्थविर :- हा धिक् कष्टं, दस्यवः सम्पतन्ति । किमत्र शरणं प्रपद्येमहि । " अत्र नायिका-सखी-स्थविरादीनां राजगृह मङ्ग ेन विद्रुतानां दस्युभ्यो भयम् ॥ तथा मृच्छकट्यां सार्थवाहचारुदत्तस्य चौर्याभिशापजं नृपाद् भयम् । तथा वेणीसंहारे पञ्चमेऽङ्के [नेपथ्ये कलकलानन्तरम] - "भो भो दुर्योधनानुजीविनः कौरवभटाः किमिदमस्मद् भयाद्यथायथं सञ्चरन्ति भवन्तः । धृतराष्ट्र : - [ साशंक्रम् ] सञ्जय ! ज्ञायतां किमेतदिति । सञ्जय : – [ उत्थाय नेपथ्याभिमुखमवलोक्य ] तात ! महाराज ! प्राप्तावेकरथारूढौ पृच्छन्तौ त्वामितस्ततः । सर्वे - (साशंकम् ) कश्च कश्च -- सञ्जय:-- स कर्णारिः स च क्रूरो वृककर्मा वृकोदरः ।। गान्धारी - जाद किं संपदं अवलंवणं इति । [जात किं साम्प्रतमवलम्बनम् । इति संस्कृतम् ] एतदरिभयम् । तथा रत्नावल्याम्- शंकुक विरचित 'चित्रोत्पलाचलम्बितक' नामक प्रकररण के पचमांक --- " [नेपथ्यमें चीत्कार करते हुए ] पकड़ो रे पकड़ो, बांधो रे बांधो। [सब लोग भयभीत हाकर देखने लगते हैं] । वृद्ध - हाय डाकू श्रा रहे हैं। यहाँ किसकी शरण में जाय ।" इसमें राजगृह के भंग हो जानेसे भागे हुए नायिका, सखी तथा स्थविर आदि को डाकुनों भय [वरिणत हुआ है अतः यह 'उद्वेग' नामक अङ्गका उदाहरण ] है । इसी प्रकार मृच्छकटिकमें सार्थवाह चारुदत्तको चौके श्रभिशाप से उत्पन्न राजासे भय [उद्वेगका उदाहरण है ] । इसी प्रकार वेणीसंहारमें पश्वम श्रङ्कमें " [नेपथ्य में कोलाहलके प्रनन्तर] अरे रे दुर्योधनके अनुयायी कौरव वीरो ! हमारे भयके मारे तुम इधर-उधर क्यों भाग रहे हो ? धृतराष्ट्र - [सशंक शोकर ] सञ्जय ! देखो तो क्या बात है । सञ्जय - [ उठ कर और नेपथ्यकी श्रोर देख कर ] तात महाराज ! चापको इधर-उधर पूछते हुए एक रथपर बैठे हुए दोनों आ गए हैं । सब लोग - [भयभीत होकर ] कौन कौन ? सञ्जय - - वह कर्णका शत्रु [अर्जुन] और वह भेड़ियाके समान कर्म वाला भीम । गान्धारी -- अरे बेटा ! अब क्या सहारा हो सकता है ? यह शत्रुभय [का उदाहरण ] है । इसी प्रकार रत्नावलीमें- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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