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________________ १५४ ] नाट्यदर्पणम् [ का०५४, सु०८४ सागरिका-वर दाणिं अहं सयं य्येव अत्ताणयं उबधैय उवरदा। न उण जाणिसंकेदबुसंताए देवीए सुसंगदा विय परिभूद म्हि । ता जाव इध असोए गदन जहासमीहिदं करिस्सं।" [परमिदानीमहं स्वयमेवात्मानमुद्वध्योपरता । न पुनतिसंकेतवृत्तान्तया देव्या सुसंगतव परिभूतास्मि । तद् यावत्राशोके गत्वा यथासमीहितं करिष्ये। इति संस्कृतम्]। अत्र नायिकातो भयम् । (6) अथ विद्रव : भित्र ८४]--द्रवः शंका भय-त्रासकारिणो वस्तुनो या शंकाऽपायकारकत्वसम्भावना सा द्रवति रनथीभवति हृदयमनयेति 'द्रवः' । उपनतं भयमुद्वेगः । तत्सम्भावना तु विद्रवः । यथा कृत्यारावण षष्ठेऽङ्के शान्तिगृहस्थे रावणे-- "[नेपथ्ये हा अज्जउत्त ! परित्तायाहि परित्तायाहि । [हा आर्यपुत्र ! परित्रायम्व, परित्रायस्व । इति संस्कृतम् ] । प्रतिहारी-श्रुत्वा ससम्भ्रममात्मगतम्] अम्मो भट्टिणी चिकंदहि । [प्रकाशम् ] भट्टा अंतेउरे महतो कलय कलो मणीयदि । [अहो भी एवाक्रन्दति । भर्तः ! अन्तःपुरे महान् कलकलः श्रूयते । इति संस्कृतम्]। __ रावणः-ज्ञायतां किमेतत् ।" इति । सागरिका-प्रच्छा हो कि अब मैं स्वयं अपने-आप फांसी लगा कर मर जाऊँ ताकि संकेत [मिलन के समाचारको जान, जाने वाली रानी [वासवदत्ता] के द्वारा सुसंगताके समान अपमानित न होना पड़े। इसलिए इस शोक के पास जाकर अपनी इसहाकी पूर्ति करती हूँ। यह नायिकासे भय [का उदाहरण है। (८) विद्रव अब 'विद्रव' [नामक गर्भसन्धिके अष्टम अङ्गका लक्षण प्रादि करते हैं]--- [सूत्र ८४]--शंका 'द्रव' [नामसे कही जाती है। भय या त्रास उत्पन्न करने वाली वस्तुसे जो शंका अर्थात् विनाश या अनिष्ट करने को सम्भावना, वह, जिससे हृदय द्रवित अर्थात् शिथिल होता है [इस व्युत्पत्ति अनुसार] 'व' कहलाती है। [प्रागे 'उद्वेग' नामफ पूर्वोक्त ङ्गसे इस 'द्रव' का भेद दिखलाते हैं । श्रा जाने वाला भय 'उद्वेग' कहलाता है और [भागे आने वाले भयकी] सम्भावना द्रव [नामसे कही जाती है। [यह उद्वेग' तथा 'द्रव' इन दोनों अङ्गोका लेड है। जैसे कृत्यारावरण में षष्ठांकमें रावणके शान्तिगृहमें बैठे होनेपर --- "नेपथ्यम] हा आर्यपुत्र ! बचानो बचानो। प्रतीहारी--[सुनकर भयभीत होकर अपने मनमें] अरे यह तो स्वामिनी ही चिल्ला रही है। [प्रकाशमें] हे स्वामिन् ! अन्तःपुर में बड़ा कोलाहल सुनाई दे रहा है। रावरण---[जाकर देखो यह क्या बात है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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