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________________ हेमचन्द्र की अवस्था उस समय १३ वर्ष की हो चुकी थी और उसके बाद बहुत शीघ्र ही उनका देहावसान हो गया। पता नहीं यह उसके किसी षड्यन्त्र का परिणाम था या यह स्वाभाविक मृत्यु थी। यद्यपि ग्रन्थों में तो इसका उल्लेख नहीं मिलता है फिर भी अजयपाल की प्रकृति को देखते हुए यह पाश्चर्य नहीं है कि उसने किसी षड्यन्त्र द्वारा प्राचार्य हेमचन्द्र को समाप्त करा दिया हो। क्योंकि प्राचार्य के निधन के बाद ३२वें दिन ही अजयपाल ने विष देकर कुमारपाल को समाप्त कर दिया और स्वयं राज्यसिंहासन पर अधिकार कर लिया। इस घटना का उल्लेख अनेक जैन ग्रन्थों में पाया जाता है । सन् १३४८ में लिखे गए राजशेखर सूरि के 'प्रबन्धकोष' में इस घटना का उल्लेख इस प्रकार किया गया है "एवं ब्रजति काले राजा कुमारपालदेवः श्री हेमश्च वृद्धो जाती। श्री हेमसूरिंगच्छेविरोधः । रामचन्द्र-गुणचन्द्रादिवृन्दमेकतः । एकतो बालचन्द्रः । तस्य च बालचन्द्रस्य राजभ्रातृव्येन मजयपालेन सह मैत्री। एकदा प्रस्तावे राज्ञो गुरूणां प्रामडस्य च रात्री मन्त्रारम्भः । राजा पृच्छति-भगवन् ! प्रहमपुत्रः, कमहं स्वपदे रोपयामि ? गुरवो अवन्ति प्रतापमल्लं दौहित्रं राजानं कुरु धर्मस्थर्याय, अजयपालात्तु स्वस्थापितधर्मक्षयो भावी । अत्रान्तरे प्राभडः प्राहभगवन् ! याशस्तादृशः, प्रात्मीयो भव्यः । पुनः श्रीहेमः-प्रजयपाल राज मा कृथाः रावयव । एवं मन्त्रं कृत्वा उस्थितास्त्रयः । स च मंत्रो बालचन्द्रेण श्रुतः, अजयपालाय च कथितः । प्रतो हेमगच्छीयरामचन्द्रादिषु द्वेषः, प्राभडे तु प्रीतिः । हेमसूरेः स्वर्गमनं जातम् । ततों दिनद्वात्रिंशता राजा कुमारपालोऽजयपालदात्तविषेण परलोकमगमत् । अजयपालो राज्ये निषण्णः । श्री हेम-द्वेषाद् रामचन्द्रादिशिष्याणां तप्तलोहविष्टासनपातनया मारणं कृतम् । राजविहाराणां बहूनां पातनम् । लघुक्षुल्लकानाहाय्य प्रातः प्रातमृगयां कतु मन्यासयति । पूर्वमेते चैत्यपरिपाटीमकार्षुरित्युपाहसता बालचन्द्रोऽपि स्वगोत्रहत्याकारक इति अवद्भिाह्मणर्मनस उत्तारितः । श्रीमालवान् गत्वा मृतः । पापं पच्यते हि सव्यः ।" प्राचार्य हेमचन्द्र के शिष्य प्रस्तुत ग्रन्थ नाटयदर्पण के निर्माता रामचन्द्र उक्त गुजरात की महाविभूति प्राचार्य हेमचन्द्र के प्रमुख शिष्य थे। राजा जयसिंह सिद्धराज के समय में ही प्राचार्य हेमचन्द्र ने उन्हें अपना पट्ट शिष्य घोषित कर दिया था। सन् १२७७ (सं० १३३४) में लिखे गए प्रभाचन्द्रसूरि के 'प्रभावक चरित' में रामचन्द्र के पट्टधर शिष्य होने का उल्लेख निम्न प्रकार किया गया है। "राजा श्रीसिद्धराजेन, अन्यदानुयुयुजे प्रभुः। भवतां कोऽस्ति पदृस्य योग्यः शिष्यो गुणाधिकः ।। तमस्माकं दर्शयत चित्तोत्कर्षाय, मामिव । अपुत्रमनुकम्पा, पूर्वे त्वां मा स्म शोचयन् ॥ . प्राह श्रीहेमचन्द्रश्च न कोऽप्येवं हि चिन्तकः । आद्योऽप्यभूदिलापालः सत्पात्राम्भोधिचन्द्रमाः ॥ सज्ज्ञानमहिमस्थैर्य मुनिनां किं न जायते । कल्पद्रुमसमे राशि स्वयीशि कृतस्थिती ।। अस्त्यमुष्यायाणो रामचन्द्राख्यः कृतिशेखरः । प्राप्तरेखः प्राप्तरूपा सङ्घ विश्वकलानिधिः ।। अन्यदाऽदर्शयंस्तेऽमु, क्षितिपस्य स्तुति ' च सः। अनुक्तामाद्यविद्भिहल्लेखाधायिनी व्यधात् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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