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________________ इन श्लोकों में राजा जयसिंह सिद्धराज और प्राचार्य हेमचन्द्र का संवाद वरिणत है। एक वार राजा सिद्धराज जयसिंह ने प्राचार्य हेमचन्द्र से पूछा कि-हे भगवन् ! भापका उत्तराधिकारी योग्य शिष्य कौन है. हमें भी उसका दर्शन कराने की कृपा करें। राजा जयसिंह के कोई पुत्र नहीं था। इसलिए उसने कहा कि हे प्राचार्य कहीं ऐसा न हो कि मेरी तरह प्रापके विषय में भी शोक का अवसर प्राए कि प्रापका कोई योग्य शिष्य नहीं था। इसलिए अपने पट्टधर उत्तराधिकारी का निश्चय कर लीजिए । और इस पर प्राचार्य हेमचन्द्र ने रामचन्द्र को अपना उत्तराधिकारी पट्टशिष्य बतलाया और कहा इसे किसी समय प्रापको दिखला भी चुका हूँ। उस समय उसने अर्थात् रामचन्द्र ने आपको अपूर्व ढंग से स्तुति भी की थी। इस स्तुति का वर्णन उसी 'प्रभावक चरित' में निम्न प्रकार किया गगा है तथाहि मात्रयाप्यधिकं कंचिन्न सहन्ते जिगीषवः । इतीव त्वं घरानाथ ! धाराधिपमपाकृथाः ॥ अर्थात् हे राजन् । विजयेन्यु लोग (मात्रयाप्यधिक) अपने से तनिक भी बड़े को सहन नहीं करते हैं, इसलिए घरानाथ ! माप उस धारानाथ अर्थात् मालवाराज का नाश कर डालें। इस श्लोक में धरानाथ तथा धारानाथ शब्दों के प्रयोग में चमत्कार है। इस शब्दों की मात्रामों की गणना की जाय तो 'धरानाथ की अपेक्षा 'धारानाथ' में एक मात्रा अधिक है। कवि ने धरानाथ सम्बोधन 'गुर्जराधीश जयसिंह सिंहराज के लिए किया है और 'धारानाथ' पद से मालवराज को पोर संकेत किया है। वह मात्रया अधिक है । इसलिए इसको नष्ट करने की बात कवि ने कही है । इस उक्ति में कुछ कविजनोचित भपूर्व चमत्कार है । इसीलिए भाचार्य हेमचन्द्र ने उसे 'अनुक्तामाद्यविद्भि' एकदम अपूर्व कहा है । और इसीलिए उसको सुन कर राजा का सिर झूमने लगा। जैसा कि अगले श्लोक में कहा है शिरोषूननपूर्व च भूपालोऽत्र दृशं दधी। रामे, वामेतराचारो विदुषां महिमस्पृशाम् ।। इस प्रकार के वर्णनों से विदित होता है कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने राजा जयसिंह सिद्धराज के सामने ही अर्थात् अपनी मृत्यु से लगभग ४०-४२ वर्ष पूर्व ही रामचन्द्र को अपना पट्टधर उत्तराधिकारी एवं प्रमुख शिष्य घोषित कर दिया पा। रामचन्द्र के अतिरिक्त १ महेन्द्रसूरि, २ गुणचन्द्र सूरि, ३ वर्षमानगणि, ४ देवचन्द्र मुनि, ५ पश्चन्द्र ६ उदयचन्द्र तथा ७ बालचन्द्र ये ७ उनके सहपाठी तथा भाचार्य हेमचन्द्र के विशेष कृपापात्र शिष्य थे। १. महेननरि-इन में से महेन्द्रसूरि ने प्राचार्य हेमचन्द्र के 'भनेका.संग्रह' मामक अन्य के ऊपर 'हेमानेकार्य संग्रह टीका' लिखी थी। जैसा कि उनके निम्न इलोक से प्रतीत होता है श्री हेमसूरिशिष्येण श्रीमन्महेमासूरिणा। भक्तिनिष्ठेन टीकेयं तमाम्नव प्रतिष्ठिता ॥ २.३. पम्पकार के सहाम्यापी पुलचनपति सपा वर्षमानपलि-वि०स० १२४१ (सर १२०४ १०) में सोमप्रभाचार्य ने 'कुमारपाल प्रतियोष' काम्प-न्य की रचना की थी। सोबत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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