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________________ सकते हैं । इस प्रकार उन्होंने संस्कृत विद्या के अध्ययन के निमित जैन धर्म एवं गुजरात प्रदेश दोनों को स्वावलम्बी बना दिया है। अन्तिम झांकी प्राचार्य हेमचन्द्र एक महान् साधुपुरुष और संस्कृत के प्रौढ़ विद्वान थे । उनका अधिकांश समय अध्ययन, अध्यापन एवं साहित्यिक कार्य में व्यतीत होता था। राजा जयसिंह के साथ और उनके बाद जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल के साथ यद्यपि उनका घनिष्ट सम्बन्ध था, किन्तु वे श्रमणों की नाई अलग अपने विहार में रहते थे। प्रावश्यकता होने पर सिद्धगज जयसिंह और कुमारपाल उनके स्थान पर जाकर ही उनसे आवश्यक परामर्श प्राप्त करते थे। फिर भी राज-सम्पर्क बड़ी बुरी बला है । भाचार्य हेमचन्द्र को इस राज-सम्पर्क का बड़ा बुरा फल भोगना पड़ा। राजा जयसिंह सिद्धराज के साथ माचार्य हेमचन्द्र का प्रथम परिचय ११३६ में मालवविजयोत्सव के समारोह के अवसर पर हुआ था। उस समय उनकी अवस्था ४६ वर्ष की थी। उसके बाद ७ वर्ष तक राजा जयसिंह सिद्धराज के साथ उनका सम्बन्ध रहा। उसके बाद उनके उत्तराधिकारी 'मणहिल-पट्टन' के राजा कुमारपाल के साथ ३० वर्ष तक उ. का सम्बन्ध रहा । इस प्रकार ४६ वर्ष की प्रायु में राज-सम्पर्क में आकर ३७ वर्ष तक वे निरन्तर राज-सम्पर्क में रहे, प्रौर ८३ वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुमा। उनके देहावसान की घटना बड़ी करुण है ! 'प्रणहिल-पट्टन' के राजा और प्राचार्य हेमचन्द्र के शिष्य कुमारपाल के कोई पुत्र नहीं था। एक पुत्री थी और उसका लड़का प्रतापमल्ल था। ३० वर्ष राज्य करने के बाद राजा कुमारपाल वृद्ध हो गए थे, और उन्हें राज्य के उत्तराधिकारी कर निर्णय करने को चिन्ता हुई। उनके निकट सम्बन्धियों में एक तो यही उनका दौहित्र प्रतापमल्ल पा और दूसरा उनका भाई अजयपाल था। इन्हीं दो में से किसी को 'प्रणहिल पटन' की राजगट्टी का उत्तराधिकारी बनाया जा सकता था। इन दोनों में किसको राज-सिंहासन देना उचित होगा इस विषय में परामर्श करने के लिए वृद्ध राजा कुमारपाल भाचार्य हेमचन्द्र से परामर्श करने के लिए उनके स्थान पर गए। राजा के साथ उनका प्रिय एक जैन व्यापारी 'वरणाह-प्राभड़' भी था। राजा जयसिंह सिद्धराज के साथ प्राचार्य हेमचन्द्र का सम्पर्क केवल सात वर्ष ही रहा था । इसलिए जयसिंह शैव धर्म के ही अनुयायी बने रहे, किन्तु कुमारपाल प्राचार्य हेमचन्द्र के उपदेशों को सुन कर जैन बन गए थे। उनका दौहित्र प्रतापमल्ल भी जैन था। इसलिए प्राचार्य हेमचन्द्र ने र कुमारपाल को यह परामर्श दिया कि धर्म के स्थैर्य के लिए प्रतापमल्ल को गद्दी देना अच्छा रहेगा। किन्तु राजा के जैन मित्र 'वणाह-माभड़' की यह सम्मति थी कि-"कुछ भी हो, पर अपना काम का" इस कहावत के अनुसार 'प्रजयपाल' को गद्दी देना ठीक होगा । अन्त में परिस्थितियों से विवश होकर अजयपाल को ही राज्य का उत्तराधिकारी बनाया गया। प्राचार्य हेमचन्द्र के यहां जिस समय राजा कुमारपाल राज्य के उत्तराधिकारी के विषय में परामर्श कर रहे थे उस समय प्राचार्य का एक विद्यार्थी बालचन्द्र भी वहां उपस्थित था। उस बालक बालचन्द्र के द्वारा प्रजयपाल को किसी तरह यह बात मालूम हो गई कि प्राचार्य हेमचन्द्र ने उसको गद्दी दिए जाने का विरोध किया है। इस बात को सुन कर उसे बड़ा क्षोभ हुमा और यह भाचार्य हेमचन्द्र तथा उनके कृपापात्र एवं साथियों का शत्रु बन गया। पाचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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