SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का० ४६-४७, सू० ६२ ] प्रथमो विवेक: [ १२३ यथा वा रोहिणीमृगाकाभिधाने प्रकरणे प्रथमेऽङ्के"मृगाङ्कः [सोत्कण्ठम्] सा स्वर्गलोकललनाजनवर्णिका वा, दिव्या पयोधिदुहितुः प्रतियातना वा । शिल्पश्रियामथ विधेः पदमन्तिमं वा, विश्वत्रयीनयनसङ्घटनाफलं वा॥ एतानि मुखसन्धेर्द्वादशाङ्गानि ।। ४५॥ [२] अथ प्रतिमुख सन्ध्यङ्गान्युद्दिशति[सूत्र ६२]---विलासो धूननं रोधः सान्त्वनं वर्णसंहतिः । नर्म नर्मद्युतिस्तापः स्युरेतानि यथारूचि ॥४६॥ पुष्पं प्रगमनं वज्रमुपन्यासोपसर्पणम् । पञ्चावश्यमथाङ्गानि प्रतिमुखे त्रयोदश ॥४७॥ अथवा जैसे रोहिणीमृगाङ्क नामक प्रकरणके प्रथम अङ्कमें"मगाङ्क उत्कण्ठापूर्वक कहता है वह [रोहिणी] क्या स्वर्ग लोककी स्त्रियोंकी [वरिणका] चित्रित करनेवाली लेखनी [या 'वर्णका' कस्तूरी है । अथवा सागरकी पुत्री लक्ष्मीको दिव्य प्रतिकृति [प्रतियातना तस्वीर] है। अथवा विधाताके रचना-कौशलको चरम सीमा है अथवा तीनों लोकोंके [समस्त प्राणियोंके] नेत्रोंकी रचनाका फल है।" इसमें रोहिणीके सौन्दर्यातिशयके कारण उत्पन्न विस्मयको मृगाङ्कने प्रकट किया है । इसलिए यह मुख सन्धिके 'परिभावना' नामक बारहवें अङ्गका उदाहरण है । इस प्रकार यहाँ तक ग्रन्थकारने मुखसन्धिके बारह अङ्गों के लक्षण तथा उदाहरण दिखलाकर उनका विस्तारपूर्वक विवेचन कर दिया है। इसलिए अब इसका उपसंहार करते हुए अगली पंक्ति लिखते हैं ये बारह मुखसन्धि प्रङ्ग होते हैं ॥४५॥ [२] प्रतिमुखसन्धिके तेरह अङ्ग--- ___ अब इसके आगे प्रतिमुखसन्धिके तिरह] अङ्गोंका उद्देश [नाममात्रेण कथन] करते हैं [सूत्र ६२]-(१) विलास, (२) घूनन, (३) रोध, (४) सान्त्वन, (५) वर्णसंहार, (६) नर्म, (७) नर्मद्युति और (८) ताप ये [पाठ अङ्ग प्रतिमुखसन्धिमें] यथारुचि रखे जा सकते हैं। अर्थात् उनका रखा जाना अपरिहार्य नहीं है। कथावस्तुको उपयोगिताके अनुसार उनको रखा भी जा सकता है और नहीं भी रखा जा सकता है] ॥४६॥ [सूत्र ६२]-(९) पुष्प, (१०) प्रगमन, (११) वन, (१२) उपन्यास और (१३) उपसर्पण ये पांच [प्रङ्ग प्रतिमुखसन्थिमें] प्रावश्यक हैं । इस प्रकार प्रतिमुखसन्धिमें कुल तेरह जंग होते हैं।४७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy