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अथ कार्य विवृणोति
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दम्
[ सूत्र ३५ ] -- साध्ये बीजसहकारी कार्यम् ।
प्रधाननायक - पताकानायक - प्रकरीनायकैः साध्ये प्रधानफलत्वेनाभिप्रेते, बीजस्य प्रारम्भावस्थोपक्षिप्तस्य प्रधानोपायस्य, सहकारी सम्पूर्णतादायी सैन्य-कोश दुर्गसामाद्युपायलक्षणो द्रव्य-गुण- क्रियाप्रभृतिः सर्वोऽर्थः, चेतनैः कार्यते फलमिति कार्यम् ।
अयमत्रोपायानां निबन्धसंक्षेपः ।
सहायानपेक्षाणां नायकानां वृत्ते बीज बिन्दु - कार्याणि त्रय एवोपायाः । सहायापेक्षाणां तु पताका प्रकारीभ्यां अन्यतरया वा सह पञ्च चत्वारो वेति ।
[ का० ३३, सू० ३५
अत्र अन्तिम उपाय 'कार्य' शेष रह जाता है इसका लक्षण आदि करते हैं । जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है चेतन और अचेतन वर्ग में जो उपायोंका द्विविध विभाग किया गया है उसमें सबसे प्रथम उपाय बीज तथा सबसे अन्तिम उपाय कार्य इन दो उपायोंको श्रचेतन उपायोंके वर्ग में रखा गया था । वैसे कार्यका जो लक्षण आगे किया जा रहा है उसमें भी कार्यको बीज का सहकारी बतलाया गया है । इस लिए इन दोनोंका परस्पर विशेष सम्बन्ध है ।
ब कार्यकी व्याख्या करते हैं
[ सूत्र ३५ ] - साध्य [अर्थात् प्रधान फलकी सिद्धि] में बीजका सहकारी [ द्रव्य, गुरण श्रादि प्रचेतन साधन ] 'कार्य' [कहलाता ] है ।
प्रधान नायक, पताका नायक या प्रकरीनायकोंके द्वारा साध्य अर्थात् प्रधान फल रूप से अभिप्रेत [ विषय ] में [ बोजस्य प्रर्थात् ] प्रारम्भावस्था के रूपमें श्रारोपित बीज अर्थात् प्रधानोपाय रूप बीजका सहकारी श्रर्थात् [ उसको] पूर्णता तक पहुँचानेवाला सैन्य, कोश, दुर्ग, सामादि उपाय रूप द्रव्य, गुण, क्रिया श्रादि सारा ही [ श्रचेतन साधनभूत] अर्थ, चेतनों के द्वारा फल [ साध्यकी सिद्धिमें विशेष रूपसे प्रवृत्त अर्थात् उपयुक्त ] कराया जाता है । इस ['चेतनः कार्यते फलमिति कार्यम्' इस व्युत्पत्ति ] से 'कार्य' [कहलाता ] है ।
यह पाँचों प्रकार के उपायोंका संक्षिप्त रूपमें वर्णन हुआ।
ये पाँचों उपाय सर्वत्र अपरिहार्य नहीं हैं । किन्तु श्रावश्यकता के अनुसार ही उनका उपयोग किया जाता है। जिन नायकोंको सहायकोंकी विशेष प्रावश्यकता नहीं होती है और स्वयं अपने सामर्थ्य से हो जो सारे कार्यको सिद्ध कर लेते हैं उनके चरित्रको लेकर लिखे गये नाटकों में पताका' तथा 'प्रकरी' का कोई उपयोग न होने से उनकी रचना नहीं की जाती है । उस दशा में इन नाटकों में तीन ही उपायोंका प्रयोग होता है । सहायककी श्रावश्यकता जिनको पड़ती है उनके चरित्रमें श्रावश्यकतानुसार केवल पताका या केवल प्रकरी किसी एक का उपयोग होनेपर चार, श्रीर दोनोंका उपयोग होनेपर पांचों उपाय काममें भाते हैं । इसी बातको ग्रंथकार अगली पंक्ति में कहते हैं
सहायकको अपेक्षा न रखनेवाले नायकोंके चरित्र में होज. उपाय [प्रयुक्त] होते हैं । और सहायकों को अपेक्षा रखनेवाले पताका तथा प्रकरी दोनोंको मिलाकर पाँच, अथवा उन दोनोंमेंसे तीनके साथ ] मिलाकर चार [ उपायोंका प्रयुक्त किए जाते ] हैं।
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दु श्रौर कार्य तीन ही को [ के चरित्रमें] में तो किसी [ एकको बीजादि
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