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नाट्यदर्पणम् [ का० १२, सू० १० अथ अन्यानपि वृत्तभेदान् दर्शयति[सूत्र १०] प्रकाशं ज्ञाप्यमन्येषां स्वगतं स्वहृदि स्थितम् ।
परावृत्य रहस्याख्यान्यस्मै तदपवारितम् ॥१२॥ मर्थात् कल्पना की जा सकती है इसलिए वह 'ऊह्य' [कहलाता है । क्योंकि पैरोंसे चेले बिना दूसरे स्थानपर नहीं पहुंचा जा सकता है। जो उपेक्षित किया जाता है अर्थात् लज्जादि-जनक होनेके कारण अनाहत किया जाता है वह 'उपेक्ष्य' [कहलाता है। [धृणाके जनक] भोजनस्नान-शयन और मूत्र-त्याग प्रादि [प्रस्रवण] जुगुप्सित [कहलाते हैं। किन्तु 'उत्तररामचरित' में रामको गोवमें पड़ी हुई सीताका और हमारे बनाए हुए 'नलविलास' में वनमें दमयन्तीके शयनका जो अभिनय दिखलाया गया है वह प्रस्तुतमें उपयोगी होने और मनोरञ्जक होनेके कारण दोष नहीं है ॥११॥ भावाभिव्यक्ति के नाटकीय प्रकार
नाटकमें और लोक में भी सारी बातें एक ही रूप में से नहीं कही जाती हैं । भिन्न-भिन्न अवसरोंपर भिन्न-भिन्न प्रकारकी शैलीका अवलम्बन वार्तालापमें किया जाता है । कोई बात ऐसी होती है जो सबके सामने कही जाती है । कोई ऐसी होती है जिसे वक्ता दूसरों से छिपा कर अपने तक ही सीमित रखना चाहता है। इन दोनों के लिए नाटकमें अलग-अलग शैलियों का अवलम्बन किया जाता है। जो बात गोप्य नहीं है, वक्ता सबको उस बातको सुनाना चाहता है उसको नाट्यकी परिभाषामें 'प्रकाशम्' शब्दसे कहा जाता है। और जिसको वक्ता अन्य सबसे छिपाकर केवल अपने तक ही सीमित रखना चाहता है इस प्रकारकी बात के लिए नाटकमें 'स्वगतम्' शब्द का प्रयोग किया जाता है । ये 'प्रकाशम्' तथा 'स्वगतम्' शब्द नाटक में भावाभिव्यक्तिकी विशेष प्रकारकी शैलीको सूचित करते हैं। 'स्वगतम्' रूपमें कही जाने वाली बात गोप्य होती है । परन्तु उसकी गोप्यता केवल अभिनय करने वाले पात्रों की दृष्टिसे ही होती है। नाटक के देखने वाले सामाजिकोंकी दृष्टिसे नहीं। नाटक में लिखते समय जिसको 'स्वगतम्' लिखा जाता है वह बात भी सामाजिकोंको सुनानी ही होती है। अन्यथा सामा
रसास्वाद गडबडा जायगा। इसलिए अभिनय करते समय उस स्वगत भागको भी ज़ोरसे बोला जाता है कि जिससे सामाजिकगण उसे स्पष्ट रूपसे सुन सकें। केवल मुख-मुद्रादिके द्वारा ऐसा अभिनय किया जाता है कि मानो वक्ला अपने मन में ही कह रहा है ।
इसी प्रकार जो बात अनेक पात्रोंसे छिपाकर किसी एक पात्र पर प्रकट करनी होती है उसे अन्य लोगोंकी अोर से मुख मोड़कर उस एक व्यक्तिसे कहा जाता है। उसको 'अपवारित' नामसे कहा गया है । इस 'अपवारितम्' को भी सामाजिकको सुनाना अवश्य अभिप्रेत होता है । इसी बात को इस कारिकामें लिखते हैं---
प्रब वृत्त [को अभिव्यक्ति के अन्य प्रकारोंको भी दिखलाते हैं
[सूत्र १०] - अन्य सबको जतलाने योग्य [वृत्त या बात को 'प्रकाशम्' और केवल अपने हृदयमें स्थित [गोप्य बात] को 'स्वगतम्' [शैलीसे] कहा जाता है। [बहुतोंसे छिपाकर एक ही व्यक्ति पर प्रकट करनेकेलिए अन्योंकी पोरसे] मुख मोड़कर रहस्यका कथन करना 'अपवारितम्' कहा जाता है ।१२।
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