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दर्पणम्
स कविस्तस्य काव्येन मर्त्या अपि सुधान्धसः । रसोमिंघूर्णिता नाट्य यस्य नृत्यति भारती ||५|| नानार्थशब्दलौल्येन पराश्वो ये रसामृतात् । विद्वांसस्ते कवीन्द्राणामर्हन्ति न पुनः कथाम् ||६||
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इन श्लोकों में ग्रन्थकारने कथा प्रादि काव्यभेदोंके मार्गको 'अलङ्कारमृदु:' भतएव 'सुसञ्चर' कहा है और नाटककी रचनाके मार्गको 'रस- कल्लोल - संकुल' होनेके कारण 'दुः सञ्चर' बतलाया है । किन्तु कथा आदि गद्य-काव्यों के लेखकोंने 'गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति' लिखकर उस गद्य रचनाको ही कवियोंकी प्रतिभाकी परखके लिए कसौटी माना है । इसी प्रकार पद्यात्मक प्रबन्ध-काव्यों के लेखकोंने छन्दके परिमित अक्षरोंके बन्धन में बँधकर की जाने वाली काव्य रचना ही कवि-प्रतिभाका निकष माना है । वास्तव में प्रतिभावातु कवियों के लिए तो सभी मार्ग सुसञ्चर हैं और अप्रतिभावानोंके लिए सभी जगह कठिनाई है । पण्डितराज जगन्नाथने अपनी रचना शक्तिकी प्रसंशा करते हुए लिखा है
साहित्ये सुकुमारवस्तुनि दृढन्यायग्रहग्रन्थिले
तर्फे वा मयि संविधातरि समं लीलायते भारती । शय्या वास्तु मृदूत्तरच्छदवती दर्भाङ्कुरैरास्तृता । भूमिर्वा हृदयङ्गमो यदि पतिस्तुल्या रतिर्योषिताम् ॥ जिस प्रकार अनुकूल पतिके होनेपर चाहे कठोर भूमि हो या कोमल सुसज्जित शय्या हो स्त्रियोंके श्रानन्द श्रौर विलास में कोई अन्तर नहीं पड़ता है इसी प्रकार प्रतिभावान् कविके होनेपर वह किसी मार्ग चले उसके आगे सरस्वती समान रूपसे ही अपने सौन्दर्यको अभिव्यक्त करती है, उसमें अन्तर नहीं माता है ।
रसकवियों की प्रशंसा
नाट्यकी रचनाको 'रस- कल्लोल - संकुल' होनेके कारण ही कठिन कहा गया था। किन्तु वह रस ही नाट्य या काव्यका प्रारण है। इसीलिए 'रससिद्धाः कवीश्वराः' रसकवियोंकी सर्वत्र प्रशंसा की गई हैं। अगले श्लोक ग्रन्थकार भी उनकी लिखते हैं
में
प्रशंसा करते हुए
[ भव०
मर्त्यलोकके घासी
ant [ वास्तविक ] कवि है और उसके काव्य [ के पढ़ने ] से [ मनुष्य ] भी [ काव्यरस रूप ] श्रमृतका पान करने वाले बन जाते हैं जिसकी वारणी नाटक में रसकी लहरियोंमें चकराती हुई-सी नाचती है । ५ । शब्द-कवियोंकी निन्दा
जो कवि नानार्थक [श्रर्थात् श्रनेकार्थ- वाचक लिष्ट ] शब्दोंके प्रलोभनमें [ पड़कर ] रसामृत्रसे पराङ्मुख हो जाते हैं [अर्थात् रसकी उपेक्षा कर, केवल श्लेष श्रादिके निर्वाहके लिए शब्द प्रधान तुकबन्दीमें लग जाते हैं] वे विद्वान् [शब्दपटुताके कारण विद्वान् तो कहे जा सकते हैं किन्तु वे 'कवीन्द्राणां कथां न प्रर्हन्ति'] उत्तम कवि नहीं कहला सकते हैं । ६ !
१. कथम् ।
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