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३. किन्तु यह सदा प्रावश्यक नहीं कि प्रत्येक महत्व को इस प्रकार के लौकिक सुख अथवा दु:ख की अनुभूति हो ही, किन्हीं सहृदयों को नहीं भी होती, यद्यपि ऐसे सहयों की संख्या बहुत अल्प होती है, किन्तु दोनों प्रकार के रसों से उन्हें अलोकिक सुखानुभूति अवश्य प्राप्त होती है।
४. प्रतः भयानक आदि रसों को नित्य रूप से दुःक्षात्मक नहीं मान सकते, पौर अधिकांशतः ऐसा मान लेने पर भी वह दुःख लौकिक ही होता है, किन्तु यह दुःस परवर्ती अलौकिक सुखानुभूति की प्राप्ति के लिए किसी भी रूप में न तो अनिवार्य साधन है और न ही सहायक साधन । हां, वह अत्यन्त भावुक सहृदयों की प्रलौकिक सुखानुभूति के लिए उद्दीपक कारण अवश्य सिद्ध हो सकता है।
५. निष्कर्षत: भयानक, करुण मादि रस दुःसात्मक नहीं है, वे वे भी श्रृंगार मादि के समान सुखात्मक ही हैं ।
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