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छट्ठो भवो]
५४३ चेट्रियं करिस्ससि'। समप्पिओ मे गोणत्तओ। निग्गया नयरीओ, गया य गामंतरं । कया देवेण माया। दिट्ठच हि धूमधयारियं नहयलं, सुओ हाहारवभिणो 'वंसफुट्टणसहो, पुलइया दिट्ठिदुक्खया जालावली । विन्नायं य हि, जहा पलित्तो एस गामो त्ति। तओ विज्झवणनिमित्तं घेत्तूण तगभारयं धाविओ देवो। भणिओ य णं-भो कि तणभारएणं पलित्तं विज्झविज्जइ । देवेण भणियं-किमेत्तियं वियाणासि। तेण भणियं-कहं न याणामि । देवेण भणियं-जइ जाणसि, ता कहमन्नाणपव गसंधुक्कियं अणेगदेहिंधणं कोहाइसंपलितं गहियदेहिंधणो पुणो वि गिहवासं पविससि । ठिओ तुहिक्को, न संबद्धो य।
गया कंधि भूमिभाग। पयट्टो देवो तिखकंटयाउलेणं अटविमग्गेणं । इयरेण भणियं-भ fr पुण तुमं पंथं मोतूण अडविं पविससि । देवेण भणियं-किमेत्तियं जाणा । तेण भणियं-कही न याणामि । देवेण भणियं-जइ जाणसि, ता कहं मोखमगं मोत्तूण अणेगवसणसाव्यसंकलं संसारावि पविससि । ठिओ तुहिय को न संबुद्धो य । गया कंचि भूमिभागं। आवासिया गाममपि कुपुरुषचेष्टितं करिष्यसि । समर्पितस्तस्य गोणत्रिकः । निर्गतौ नगर्याः, गतौ च ग्रामान्तरम् । कृता देवेन माया । दृष्टं च ताभ्यां धूमान्धकारितं नभस्तलम् । श्रुतो हाहारवगभितः वंशस्फुट्टनशब्दः, दृष्टा दृष्टिदुःखदा ज्वालावलिः । विज्ञातं च ताभ्याम, यथा प्रदीप्त एष ग्राम इति । ततो विध्यापननिमित्तं गृहीत्वा तृणभारकं धावितो देवः । भणितश्च तेन-भोः किं तृणभारकेण प्रदीप्तं विध्याप्यते। देवेन भणितम्-किमेतावद् विजानासि ? तेन भणितम्-कथं न जानामि ? देवेन भणितम् - यदि जानासि ततः कथमज्ञानपवनसन्धुक्षितमनेकदेहेन्धनं क्रोधादिसम्प्रदीप्तं गृहीतदेहेन्धनः पुनरपि गहवासं प्रविशसि ? स्थितः तूष्णिकः, न सम्बुद्धश्च । ___ गतौ कञ्चिद् भूमिभागम् । प्रवृत्तो देवः तीक्ष्णकण्टकाकुलेनाटवीमार्गेण । इतरेण भणितम्-भोः किं पुनस्त्वं पन्थानं मुक्त्वाऽटवीं प्रविशसि ? देवेन भणितम्-किमेतावद् जानासि ? तेन भणितम्कथं न जानामि ? देवेन भणितम् --यदि जानासि, ततः कथं मोक्षमार्ग मुक्त्वाऽनेकव्यसनश्वापदसंकूला संसाराटवीं प्रविशसि? स्थितः तूष्णिकः, न सम्बुद्धश्च । गतौ कञ्चिद् भूमि भागम् । आवासितो 'हे सार्थवाहपुत्र ! पुन: बुरे पुरुष के समान आचरण मत करना।' उसको तीन बैल समर्पित कर दिये । नगरी से निकले, दूसरे ग्राम को गये । देव ने माया की। उन दोनों ने धुएं से अन्धकारित (काले-काले) आकाश को देखा। हा हा शब्द जिसमें गभित था, ऐसे बांसों के फूटने से होनेवाले शब्द को सुना। नेत्रों को दुःख देने वाली ज्वाला पंक्ति दिखाई दी। उन दोनों ने जाना कि गाँव जल रहा है । तब तृणों के ढेर को लेकर देव बुझाने के लिए दौड़ा । उसने (अर्हद्दत्त ने) कहा—'क्या तृणों के समूह से अग्नि की ज्वाला बुझायी जाती है ?' देव ने कहा'यदि जानते हो तो अज्ञानरूपी पवन के द्वारा, जिसमें अनेक देहरूपी ईंधन झोंके गये हैं, क्रोधादि से जलते हुए देह रूप ईधन को धारण कर क्यों पुनः गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते हो?' (अर्हद्दत्त) चुप रहा, बोधि को प्राप्त नहीं हुआ।
दोनों कुछ दूर गये । देव तीक्ष्ण काँटों से व्याप्त जंगल के मार्ग से प्रविष्ट हुआ । दूसरे (अर्हद्दत्त) ने कहा'अरे ! क्यों रास्ते को छोड़ कर जंगल में प्रवेश करते हो ?' देव ने कहा-'क्या इतना जानते हो ?' उसने कहा'क्यों नहीं जानता हूँ ?' देव ने कहा-'यदि जानते हो तो मोक्षमार्ग छोड़कर क्यों अनेक व्यसनरूपी हिंसक पशुओं से व्याप्त संसाररूप वन में भ्रमण (प्रवेश) करते हो ?' (यह) चुप रहा, जागृत नहीं हुआ। दोनों कुछ दूर गये । गांव
१. करेजसु ति - क । २. वंसफुडण-के । ३, धणिय - * ।
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