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छ8ो भवो]
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किलिटुपरिणामपरिणए खणमेत्तेणावि, देवाणुप्पिया, तहा बंधेइ कम्म, जहा पावेइ अणेगभवियं मिच्छत्तमोहं ति । अओ चेव बेमि- ।
__सम्मत्तनाणसहिया एगंतपमायज्जिणो पुरिसा।
___ इहपरभवनिरवेक्खा तरंति' नियमेण भवजहि ॥ ५५३ ॥ न उण' सेस ति। देवेण चितियं । एवमेयं, न अन्नहा। ता न याणामि, किंपज्जवसाणो मे एसो अबोहिलाभो ति। भयवया भणियं-थेवनियाणो खु एसो; ता अणंतरभवे चेव भविस्सइ अवसाणं ति । देवेण भणियं-भयवं, कुओ सयासाओ। भयवया भणियं-मयगावरनामाओ नियभाउणो ति। देवेण भणियं-भयवं, कि पुण तस्स पढमनामं, केण वा कारणेण इमं से दुइयं ति। भयवया भणियं-सुण
पढमनायं से असोगदत्तो; मयगो पुण इमेणं कारणेणं । इमीए चेव कोसंबीए अईयसमम्मि तावसो नाम सेट्ठी अहेसि । सो य दाणाइकिरियासमेओ वि पमाई, बहुविहवसंपन्नो वि निच्चचालयति साधक्रियाम् । ततश्च स जोवस्तथा विधक्लिष्टपरिणामपरिणतः क्षणमात्रेणापि देवानुप्रिय ! तथा बध्नाति कर्म यथा प्राप्नोत्यनेकभविक मिथ्यात्वमोह मिति । अत एव ब्रवीमि
सम्यक्त्वज्ञानसहिता एकान्तप्रमादवजिनः पुरुषाः ।
इहपरभवनिरपेक्षास्तरन्ति नियमेन भवजलधिम् ॥ ५५३॥ न पुनः शेषा इति । देवेन चिन्तितम्-एवमेतद्, नान्यथा । ततो न जानामि किंपर्यवसानो मे एषोऽबोधिलाभ इति । भगवता भणितम्-स्तोकनिदानः खल्वेषः, ततोऽनन्तरभवे एव भविष्यति अवसानमिति । देवेन भणितम्-भगवन् ! कुतः सकाशात् । भगवता भणितम् - मूकापरनाम्नो निजभ्रातुरिति । देवेन भणितम्-भगवन् ! किं पुनस्तस्य प्रथमनाम, केन वा कारणेनेदं तस्य द्वितीयमिति । भगवता भणितम्--- शृणु-.
प्रथमनाम तस्याशोकदत्तः, मूकः पुन रनेन कारणेन । अस्यामेव कौशाम्ब्यामतीतसमये तापसो नाम श्रेष्ठयासीत । स च दानादिक्रियासमेतोऽपि प्रम दी, बहुविभवसम्पन्नोऽपि नित्यव्यापृतः । तत पैदा करता है । इस प्रकार हे देवानुप्रिय ! वह जीव उस प्रकार के क्लिष्ट परिणामों के फलस्वरूप क्षणमात्र में उस प्रकार के कर्म का बन्धन करता है, जो अनेक भव तक मिथ्यात्व-मोह को प्राप्त कराता है। अतएव कहता हूँ
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञानसहित एकान्त रूप से जिन्होंने प्रमाद का परित्याग कर दिया है ऐसे इहभव और परभव से निरपेक्ष पुरुष नियम से संसार-समुद्र को पार करते हैं ॥ ५५३ ॥
शेष व्यक्ति संसार समुद्र को नहीं पार करते हैं । देव ने सोचा- ऐसा ही है, अन्यथा नहीं है । अतः मैं नहीं जानता हूँ, मेरे इस अज्ञान की समाप्ति कब होगी ? भगवान् ने कहा----"इसका कारण छोटा-सा (थोड़ा-सा) है, अतः दूसरे भव में ही इसकी समाप्ति होगी।" देव ने कहा-"किसके साथ ?" भगवान ने कहा -“जिसका दूसरा नाम मूक है ऐसे अपने भाई के साथ ।" देव ने पूछा-"भगवन् ! उसका पहला नाम क्या है ? किस कारण से उसका दूसरा नाम है ?" भगवान ने कहा-"सुनो-"
उसका पहला नाम अशोकदत्त है और मूक इस कारण से है. इसी कौशाम्बी में प्राचीन समय में तापस नामक श्रेष्ठी था । वह दानक्रियाओं से युक्त होते हुए भी प्रमादी तथा बहुत वैभवयुक्त हाते हुए भी सदैव किसी
१, नित्यरंति भवन्नवं-क । २. तुण-क । ३. समेतो-ख ।
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