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________________ नवमो भवो] ८६५ तुम्भेहि संसारचारयविमोयणसमत्थं छेयणं नेहनिय ताणं पक्खालणं मोहधूलीए परमनेव्वाणकारणं अगं नाणपगरिसस्स पल्हायणं भावेण संकिलेसाइयारविरहियं भावओ सुद्धचरणं ति । तम्हा कयं कायग्वं, नवरं दवओ वि एवं पडिवज्जसु ति। तेहि भणियं-जं भयवं आणवेइ। वेलन्धरण चितियं-अहो एएसि धन्नया, पतं मणुयलोयसारं भावचरणं ति। वंदिऊण सहरिसं कयं उचियकरणिज्ज भयवओ। पविट्टो नार राया मुणिचंदो। दवावियं आघोसणापुस्वयं महादाणं, काराविया सवाययणेसु पूया, पइट्टाविओ जेट्टपुत्तो चंदजसो नाम रज्जे। निग्गओ महाविभूईए नयराओ पहाणसामंतामच्चसेटिलोयपरियओ नम्मयापमहंतेउरेण सह । पच्वइयाणि एयाणि भयवओ पहाणसीसस्स सीलदेवस्स समीवे । कोउगाणुगंपाहि पुच्छियं वेलंधरेण-भयवं, कि सो पुरिसाहमो भयवंतमहिस्स अत्तणोवसग्गकारो भविओ अभविओ त्ति । भयवया भणियं-भविओ। वेलंधरेण भणियं-पत्तबीओ अपत्तबीओ ति । भयवया भणियं-अपत्तबीओ। वेलंधरेण भणियं-पाविस्सइ नहि। भयवया धन्या यूयम् । प्राप्तं युष्माभिः संसारचारकविमोचनसमर्थ छेदनं स्नेहनिगडानां प्रक्षालनं मोहधल्या: परमनिर्वाणकारणमङ्गं ज्ञानप्रकर्षस्य प्रह्लादनं भावेन संक्लेशातिचारविरहितं भावतः शद्धचरणमिति । तस्मात् कृतं कर्तव्यम, नवरं द्रव्यतोऽप्येतत् प्रतिपद्यस्वेति । तैर्भणिम्-र द भगवान् आज्ञापयति । वेलन्धरेण चिन्तितम्-अहो एतेषां धन्यता, प्राप्तं मनुजलोकसारं भावचरणमिति । वन्दित्वा सहर्ष कृतमुचितकरणीयं भगवतः । प्रविष्टो नगरी राजा मुनिचन्द्रः । दापितमाघोषणापूर्वक महादानम्, कारिता सर्वायतनेषु पूजा, प्रतिष्ठापितो ज्येष्ठपुत्रश्चन्द्रयशा नाम राज्ये। निर्गतो महाविभूत्या नगरात् प्रधानसामन्तामात्यश्रेष्ठिलोकपरिवृतो नर्मदाप्रमुखान्तःपुरेण सह । प्रव्रजिता एते भगवत: प्रधानशिष्यस्य शीलदेवस्य समीपे। कौतु कानुकम्पाभ्यां पृष्टं वेलन्धरेण -भगवन् ! किं स पुरुषाधमो भगवन्तमुद्दिश्य आत्मन उपसर्गकारी भविकोऽभविको (वा) इति । भगवता भणितम् - भविकः । वेलन्धरेण णितम् - प्राप्तबोजोऽप्राप्तबीज इति । भगवता भणितम्-अप्राप्तबीजः । वेलन्धरेण भणितम्-- प्रास्यति नहि। को क्या करना चाहिए। भगवान् ने कहा - 'तुम सब धन्य हो। तुम लोगों ने संसाररूपी कारागार छडाने में समर्थ, स्नेहरूपी बेड़ी को तोड़नेवाले, मोहरूपी धूलि को पोछनेवाले, परम निर्वाण के कारण, ज्ञान की चरम सीमा के अंग भाव से आह्लादक, दुःख और अतिचार से रहित शुद्ध चारित्र को भाव से प्राप्त कर लिया । अत: करने योग्य कार्य कर लिया, अब द्रव्य मात्र से भी इसे प्राप्त करो।' उन्होंने कहा --'जो भगवान की आज्ञा ।' वेलन्धर ने मोचा--ओह इनकी धन्यता, इन्होंने मनुष्यलोक के सार भावचारित्र को प्राप्त कर लिया है। इस प्रकार हर्षपूर्वक भगवान् की वन्दना कर योग्य कार्यों को किया । राजा मुनिचन्द्र नगरी में प्रविष्ट हुआ। घोषणापूर्वक महादान दिलाया, समस्त आयतनों में पूजा करायी । चन्द्रयश नामक बड़े पुत्र को राज्य पर बैठाया । प्रधान सामन्त, अमात्य, सेठ लोगों से घिरा हुआ तथा नर्मदा प्रमुख अन्तःपुर के साथ वह नगर से बड़ी विभूति के साथ निकला। ये लोग भगवान् के प्रधान शिष्य शीलदेव के समीप प्रवृजित हुए। __ कौतुक और अनुकम्पा (दया) से युक्त हो बेलन्धर ने पूछा – 'भगवन् ! वह अधम पुरुष भगवान् को लक्ष्य करके अपने ऊपर उपद्रव करनेवाला क्या भव्य है अथवा अभव्य ?" भगवान ने कहा-'भव्य है । वेलन्धर ने कहा--'प्राप्तबीज़ है अथवा अप्राप्त बीज ?' भगवान ने कहा - 'अप्राप्त बीज ।' वेलन्धर ने कहा-'प्राप्त करेगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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