SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छ8ो भवो] ४६१ मयणाहवयणभोसणविरइयपायारसिहरसंघायं। उत्तुंगवेणुलंबियदीहरपोंडरियकत्तिमायं ॥५१५॥ दीणमुहपासपिडियबंदयबीभच्छरुद्धओवासं। निसियकरवालवावडकरसबरजुवाणपरियरियं ॥१६॥ विसमसमाहयपडुपडहसद्दवित्तत्थसउणसंघायं । अच्चतरुयंतसदुक्खसबरिविलयाजणाइण्णं ॥५१७॥ वियडगयदंतनिम्मियभित्तिसमुक्किन्नसूलसंघायं । तक्खणमेत्तुक्कत्तियचम्मसमोच्छइयगम्भहरं ॥५१८॥ पुरिसवसापरिपूरियकवालपज्जलियमंगलपईवं । डझंतविल्लगुग्गुलुपवियंभियधूमसंघायं ॥५१६।। सबरवहरुहिरक्खयगयमोत्तियरइयसत्थियसणाहं । चंदकरधवलदीहरपरिलंबियचमरसंघायं ॥५२०॥ मृगनाथवदनभीषणविरचितप्राकारशिखरसंघातम् । उत्तु ङ्गवेणुलम्बितदीर्घपौण्डरीककृत्तिध्वजम् ॥५१५।। दीनमुखपाशपिण्डितबन्दिकबीभत्सरुद्धावकाशम् । निशितकरवालव्यापृतकरशबरयुवपरिकरितम् ॥५१६॥ विषमसमाहतपटुपटहशब्दवित्रस्तशकुनसंघातम् । अत्यन्तरुदत्सदुःखशबरीवनिताजनाकीर्णम् ॥५१७।। विकटगजदन्तनिर्मितभित्तिसमुत्कीर्णशूलसंघातम् । तत्क्षणमात्रोत्कर्तितचर्मसमाच्छादितगर्भगृहम् ॥८१८॥ पुरुषवसापरिपूरितकपालप्रज्वलितमङ्गलप्रदीपम् । दह्यमानबिल्वगुग्गुलुप्रविजृम्भितधूमसंघातम् ॥५१६॥ शबरवधूरुधिराक्षतगजमौक्तिकरचितस्वस्तिकसनाथम् । चन्द्रकरधवलदीर्घपरिलम्बितचामरसंघातम् ॥५२०।। सिंह के मुखों से जहाँ के भवनों के शिखर का समूह निर्मित कर दिया गया था, ऊँचे-ऊँचे बांसों पर शुभ्र कमलवत् चमड़े की ध्वजाएँ लटकी हुई थीं। पाश से लपेटे गये दीनमुख बन्दियों द्वारा जहाँ का भयानक स्थान रोका गया था, जिनके हाथ में तीक्ष्ण तलवारें थीं ऐसे शबरयुवक जिनको घेरे हुए थे, बड़े हाथी-दांतों से निर्मित त्रिशूलों का समूह जहाँ की दीवारों पर उत्कीर्ण कर दिया गया था, उसी क्षण काटे गए चमड़े से जहाँ का गर्भगृह (भीतरी भाग) आच्छादित था, मनुष्यों की चर्बी से भरी हुई खोपड़ियों में जहां मंगलदीप जल रहे थे। जलाई गयी बेल की गुग्गुल से जहां धुआँ उठ रहा था, जहाँ की भूमि शबरस्त्रियों द्वारा रुधिराक्षत तथा गज-मोतियों से बनाये गये स्वस्तिक चिह्नों से युक्त थी, चन्द्रमा की किरणों के समान सफेद तथा लम्बे चामरों का समूह जहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy