________________
छट्ठो भवो]
४८६ पयट्टा एसा । समागयाई वियारउरं नाम सन्निवेसं। कया पाणवित्ती। अत्थमिओ सूरिओ। अइवाहिया रयणी। चितियं धरणेणं—एवं कयंताभिभूयस्स न जुत्तमिह चिट्ठिउं। ता पराणेमि ताव एवं दंतउरनिवासिणो खंददेवमाउलस्स' समीवं; पच्छा जहाजुतं करेस्सामि त्ति । साहियं लच्छीए। बहुमयं च तीए । पयट्टाणि दंतउरं ।
इओ य न लद्धो सत्थवाहपुत्तो ति संजायसोएण पच्चइयनिययपुरिसाण समप्पिओ सत्थो कालसेणेण । भणिया य एए-हरे, पावियन्वो तुम्हेहिं एस महाणुभावस्स गरूणं ति । चितियं च ण । जइ वि न संपन्नमोवाइयं, तहावि कायम्बरीए जहा भणियमेव बलिविहाणं काऊण पइन्नं पि ताव सफलं करेमि त्ति । पेसिया बलिपुरिसनिमित्तं सबरपुरिसा। कराविया कायम्बरीए पूया, मज्जिओ गिरिनईए, परिहियाई वक्कलाइं, कया कणवीरमुंडमाला, रयाविया महामहल्लकठेहि चिया, पयट्टो चंडियाययणं।
इओ य दंतउरपत्थिओ बिइयदियहमि अरुणुग्गमे चेव कायम्बरि परिन्भमन्तेहिं समासाइओ पापपरिणतिः, यत्कृतान्तमुखादपि एष आग
तिः, यत्कृतान्तमुखादपि एष आगत इति । प्रवत्तैषा । समागतौ विचारपूरं नाम 'सन्निवेशम । कृता प्राणवत्तिः। अस्तमितः सूर्यः । अतिवाहिता रजनी। चिन्तितं धरणेन-- एवं कृतान्ताभिभूतस्य न युक्तमिह स्थातुम् । ततः परानयामि तावदेतां दन्तपुरनिवासिनः स्कन्ददेवमातुलस्य समीपम्, पश्चाद् यथायुक्तं करिष्यामीति । कथितं लक्ष्म्यै बहुमतं च तया। प्रवृत्तौ दन्तपुरम् ।
इतश्च न लब्धः सार्थवाहपुत्र इति संजातशोकेन प्रत्ययितनिजपुरुषेभ्यः समर्पितः सार्थः कालसेनेन । भणिताश्चैते-अरे प्रापयितव्यो युष्माभिरेष महानुभावस्य गुरूणामिति । चिन्तितं च तेनयद्यपि न संपन्नमौपयाचितं तथापि कादम्बर्या यथाभणितमेव बलिविधानं कृत्वा प्रतिज्ञामपि तावत्सफलां करोमीति । प्रेषिता बलिपुरुषनिमित्तं शबरपुरुषाः । कारिता कादम्बर्याः पूजा, मज्जितो गिरिनद्याम्, परिहितानि वल्कलानि, कृता करवीरमुण्डमाला, रचिता महामहाकाष्ठश्चिता, प्रवृत्तश्चण्डिकाऽऽयतनम्।
इतश्च दन्तपुरप्रस्थितो द्वितीयदिवसेऽरुणोद्गमे एव कादम्बरी परिभ्रमद्भिः समासादितः चल पड़ी। दोनों विचारपुर नामक स्थान पर आये । भोजन किया । सूर्य अस्त हुआ। रात्रि फैल गयी । धरण ने सोचा-यम से अभिभूत मुझे यहाँ ठहरना उचित नहीं, अतः इसे दन्तपुर के निवासी मामा के पास ले जाता हूँ, बाद में जो उचित होगा सो करूंगा। लक्ष्मी से कहा, उसने माना । दन्तपुर की ओर चल पड़े।
इधर सार्थवाहपुत्र नहीं मिला-इस कारण जिसे शोक उत्पन्न हो गया है ऐसे कालसेन ने अपने विश्वस्त पुरुषों के द्वारा सार्थ को समर्पित कर दिया। इन्होंने कहा--अरे आप लोग इस समाचार को इनके पूज्य पुरुषों के पास पहुँचाओ। इसने सोचा-यद्यपि इच्छित कार्य सम्पन नहीं हुआ तथापि कादम्बरी देवी के प्रति जैसा कहा था वैसी पूजा करके प्रतिज्ञा भी सफल करूँगा। उसने दलिपुरुष की खोज के लिए शबरों को भेजा, कादम्बरी की पूजा करायी, पर्वतीय नदी में स्नान किया। वल्कल-वस्त्रों को त्याग दिया, कनर की माला धारण कर ली, बड़ी-बड़ी लकड़ियों से चिता बना ली, (अनन्तर सब) चण्डी के मन्दिर की ओर चल पड़े। - इधर दन्तपुर की ओर प्रस्थान करते हुए दूसरे दिन सूर्य निकलते ही कादम्बरी में भ्रमण करते हुए
१. मामयस्स-के।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org