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नवमी भवो]
८१६ भणियं-अज्ज सारहि, एएण घत्थं पि कोस एए बंधवा एवं परिच्चयंति । सारहिणा भणियं-देव, किमेइणा संपयं, गओ खु एसो एत्थ कारणभूओ। कडेवरमिणं केवलं चिट्ठमाणमवगाराए । कुमारेण मणियं-अज्ज सारहि जइ एवं, ता कोस एए बंधवा विलवंति । सारहिणा भणियं- कुमार, पिओ खु एसो एएसि गओ दीहजताए, अदंसणमियाणि । एएण सरिऊण सुकयाइं सोयभरपीडिया अचयंता निरंभिउ अविज्जमाणोवायंतरा य एवं विलवंति। कुमारेण भणियं-अज्ज सारहि, जइ पिओ, कोस इमं नाणुगच्छति । सारहिणा भणियं-देव, असक्कमयं; न कहेइ गच्छंतो, नावेक्खए सिणेहं, न दोसइ अप्पणा, न नज्जए थाम, विचित्ता कम्मपरिणई, अणवट्ठिया संजोया, न ईइसो अणुबंधो; अओ नाणुगच्छंति । कुमारेण भणियं-अज्ज सारहि, जइ एवं, ता निरत्थया तम्मि पिई। सारहिणा मणियं देव, परमत्थओ एवं । कुमारेण भणियं-अज्ज सारहि, जइ एवं, ता को उण इहोवाओ। सारहिणा भणियं-देव, जोगिगम्मो उवाओ, न अम्हारिसेहि नज्जइ। कुमारेण भणियं-भो नायरया, किमेवमेयं । नायरएहि भणियं-देव, एवं । कुमारेण भणियं-भो जइ एवं, ता सव्वसाकिमेवमेतद् । नागरकैर्भ णितम् देव ! एवम् । कुमारेण भणितम्-आर्य सारथे ! एतेन ग्रस्तमपि कस्माद् एते बान्धवा एतं परित्यजन्ति । सारथिना भणितम्-देव ! किमेतेन साम्प्रतम्, गत खल्वेषोऽत्र कारणभूतः। कलेवरमिदं केवलं तिष्ठदपकाराय । कुमारेण भणितम्-आर्य सारथे ! यद्येवं ततः कस्मादेते बान्धवा विलपन्ति । सारथिना भणितम्- कुमार! प्रियः खल्वेष एतेषां गतो दीर्घयात्रया, अदर्शनमिदानीम् । एतेन स्मृत्वा सुकृतानि शोकभरपीडिता अशक्नुवन्तो निरोधम् अविद्यमानोपायान्तराश्चैवं विलपन्ति । कुमारेण भणितम्-आर्य सारथे! यदि प्रियः, कस्मादिम नानुगच्छन्ति । सारथिना भणितम्-देव ! अशक्यमेतद्, न कथयति गच्छन्, नापेक्षते स्नेहम, न दृश्यते आत्मना, न ज्ञायते स्थानम्, विचित्रा कर्मपरिणतिः, अनवस्थिताः संयोगाः, नेदशोऽनुबन्धः, अतो नानुगच्छन्ति । कुमारेण भणितम्-आर्य सारथे ! यद्येवं ततो निरर्थका तस्मिन प्रीतिः। सारथिना भणितम्--देव, परमार्थत एवम् । कुमारेण भणितम्-आर्य सारथे ! यद्येवं ततः किं पूनरिहोपायः। सारथिना भणितम् -देव ! योगिगम्य उपायः, नास्मादशयिते । कमारेण भणितम -भो नागरकाः ! किमेवमेतद् । नागरकैर्भणितम्-देव ! एवम् । कुमारेण भणितम् --भो यद्येवम
है ?' नागरिकों ने कहा - 'महाराज ! ऐसा ही है।' कुमार ने कहा-'आर्य सारथी! इससे ग्रस्त होते हुए भी इसे बान्धव कैसे छोड़ देते हैं ?' सारथी ने कहा- 'महाराज ! अब इससे क्या, यहां इसका कारणभूत चला गया । केवल यह शरीर अपकार के लिए विद्यमान है।' कुमार ने कहा --'आर्य सारथी ! यदि ऐसा है तो ये बान्धव क्यों विलाप कर रहे हैं ?' सारथी ने कहा-'कुमार ! यह इनका प्रिय था, दीर्घयात्रा के लिए जाने के कारण अब इसका दर्शन नहीं हो सकेगा। इसके अच्छे कार्यों का स्मरण कर, शोक के भार से पीड़ित होकर उस शोक को रोक न पाने से, और कोई दूसरा उपाय विद्यमान न होने से ये विलाप कर रहे हैं।' कुमार ने कहा'आर्य सारथी ! यदि प्रिय है तो ये लोग इसका अनुसरण क्यों नहीं करते हैं ?' सारथी ने कहा-'यह अशक्य है, जाते हुए नहीं कहता है, स्नेह की अपेक्षा नहीं रखता है, अपने आपके द्वारा नहीं दिखाई देता है, स्थान नहीं जाना जाता है। कर्म की परिणति विचित्र है, संयोग अस्थिर हैं, इस प्रकार का सम्बन्ध नहीं है, अत: अनुसरण नहीं करते हैं ।' कुमार ने कहा-'आर्य सारथी ! यदि ऐसा है तो फिर यहाँ क्या उपाय है ?' सारथी ने कहा'महाराज ! उपाय योगियों के द्वारा जानने योग्य है; हम जैसे लोगों द्वारा नहीं जाना जाता है।' कुमार ने कहा -'हे नागरिको ! क्या यह सही है ?' नागरिकों ने कहा-'महाराज ! ऐसा ही है ।' कुमार ने कहा-'अरे, ऐसा
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