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[ समसइन्धकहा दवायेह घोसमापुव्वयं अणवेक्खियाणुरुवं महादाण, विसज्जावेह पउमरायपमहाणं मवईल मम पुत्तजन्मपत्ति, निवेएह देवीपुत्तजम्मन्भुदयं पउराणं, कारवेह अयालछणभूयं नपरमहूस' ति। समाहा य तीए जहाइटें पडिहारा । अणुचिट्ठियं रायसासमं पडिहारेहि ।
कारावियं च तेहिं बहुविहवरतूरणियनिग्धोसं । लीलाविलासविन्भममग्गपणच्चंतजुवइजणं ॥ ६८५॥ वेल्लहलबाहलइयाविलोलवलउल्लसंतझंकारं । हेलुच्छलंतकरकमलरियविमलवरद्ध तं ॥ ६८६ ॥ कम्पूरकुंकुमुप्पंकपंकपूरियनहंगणाभोय । बहलमयणाहिकद्दमखुप्पंतपडतनायरयं ॥ ६८७ ।। करकलियकणसिंगयतलिलपहारुल्लसंतसिक्कारं । मयवसविसंखलच्छलियगीयलयजणियजणहासं ॥ ६८८ ॥
महादानम्, विसर्जयत पद्मराजप्रमुखानां नरपतीनां मम पुत्रजन्मप्रवृत्तिम्, निवेदयत देवीपुत्रजन्माभ्युदय पौराणाम् । कारयताकालक्षणोद्भूतं नगरमहोत्सवमिति । समादिष्टाश्च तया यथाऽऽदिष्टं प्रतीहाराः । अनुष्ठितं राजशासनं प्रतीहारैः ।
कारितं च तैर्बहुविधवर सूर्य जनितनि?षम् । लोलाविलासविभ्रममार्गप्रनृत्ययुवतिजनम् ।। ६८५ ।। कोमलबाहुलतिकाविलोलवलयोल्लसदझंकारम् । हेलोच्छलत्करकमलधृतविमलव लान्तम् (?) ।। ६८६ ॥ कर्पूरकुङ कुमोत्पङ्कपङ्कपूरितनभोऽङ्गणाभोगम् । बहलमृगनाभिकर्दम मज्जयतनागरकम् ॥ ६८७ ॥ करकलितकनकशृङ्गसलिलप्रहारोल्लसत्सीत्कारम् । मदवशविशृखलोच्छलितगीतलयजनितजनहासम्।। ६८ ॥
दिया जाय, घोषणापूर्वक अनपेक्षित अनुरूप महादान दिलाओ, पद्मराज प्रमुख राजाओं को मेरे पुत्रजन्म का समाचार भिजवा दो, नागरिकों को महारानी के पुत्रजन्मरूप अभ्युदय का निवेदन करो। असामयिक रूप से प्रकट नमरमहोत्सव को कराओ। जैसा आदेश दिया था वह प्रतीहारों को बतला दिया गया। प्रतीहारों ने राजा की असा को पूर्ण किया।
- प्रतीहारों ने अनेक प्रकार के उत्कृष्ट वाद्यों से उत्पन्न निर्घोष कराया। लीलाओं के विलास के विप्रन से मार्ग में युवतियां नाचने लगीं। उन युवतियों के कोमल बाहुरूपी लताओं के चंचल कड़ों से झंकार प्रकट हो रही थीं। अनायास ही उहाले हुए हस्तकमलों पर वे स्वच्छ गेंदों को उछाल रही थीं। उस समय कपूर और केसर की उठी हुई धुलि आकाशरूपी आँगन के विस्तार को पूर्ण कर (भर) रही थी (अथवा आकाशरूपी स्त्री के शरीर को व्याप्त कर रही थी), अत्यधिक कस्तूरी की कीचड़ में फिसलते हुए नागरिक गिर रहे थे, सुन्दर हाथों में स्थित सोने के झोगों द्वारा जल के प्रहार करने से सौ-सौ की ननि जल रही थी, मदहोश और विश्वल
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